कला बेशकीमती होती है लेकिन बाजार में आ जाने के बाद खरीदार उसकी कीमत लगाकर उसे खरीद ही लेता हैं। अक्सर बाजार और कला की जुगलबंदी न बन पाने पर कला की कदर भी नहीं होती हैं। हम आपको ऐसे ही दो कलाकारों से मिलवा रहे हैं जो कढ़ाई और बुनाई से सजावट का सामान बनाते है लेकिन गांवों में इस काम को प्रोत्साहन न मिल पाने के कारण इनका हूनर उन्हें पैसा और पहचान नहीं दिला पा रहा।
झांसी के बबीना ब्लॉक के आरामशीन गांव के रहने वाली उषा को कढ़ाई करने का शौक हैं। उन्होंने बिना किसी प्रशिक्षण के ही घर में इस्तेमाल होने वाली चादरों को कढ़ाई करके खूबसूरत बनाया है।
अपने काम और हुनर के बारे में बताते हुए उषा कहती हैं, मैंने कभी , कहीं से भी यह काम नहीं सीखा। खुद ही मेरे मन से मैंने इस कला को जन्म दिया और अब इससे थोड़ा बहुत कमा रही हूँ।
उषा आस पड़ोस की कुछ औरतों को भी कढ़ाई सीखा रही है और इस काम का वह कोई पैसा नहीं लेती हैं। इनके पास बेबी और मीरा दोनों सीखने आती हैं।
वहीं दूसरी तरफ चित्रकूट के मनिकपुर ब्लॉक के आगरहुडा गांव की राधा भी पूरानी साड़ी और ऊन से पायदान और सजावट का सामान बना बनाती हैं।
राधा बताती हैं, मैंने स्कूल से ही यह सब सीखा है। पढ़ाई के साथ ही यह सब भी सिखाया जाता था जिसे मैंने पिछले 2 साल से जारी रखा हुआ है। सूती कपड़ों से, धोती से और बची हुई ऊन से पायदान आदि बना लेती हूँ। अभी कोई ऐसा जरिया नहीं है कि इससे कमाया भी जा सके लेकिन ऐसा हो तो अच्छा हो जाये।
इन दोनों की कलाकरों को गांवों में वो अवसर नहीं मिल पा रहे कि वह अपने हुनर को अपना व्यवसाय बना कर कमाई कर पायें।
रिपोर्टर- सफीना और सहोद्रा
Published on Jul 21, 2017