जिला चित्रकूट। यहां के स्कूलों में मिड्डेमिल का खाना बनाने वाली रसोइयों का मानदेय अक्टूबर 2014 से नहीं मिला। जिले में कुल सैंतिस सौ बयालिस रसोइयां हैं। बेसिक शिक्षा विभाग में 2 जनवरी को लिखित दरखास देने के बाद भी अब तक कुछ नहीं हुआ।
ब्लाक मानिकपुर, गांव कौबरा प्राथमिक स्कूल। यहां खाना बनाने वाली सम्पतिया, उर्मिला कुसमा और लक्ष्मिनिया हैं। उनका कहना है कि लगभग आधा दिन स्कूल में ही गुजर जाता है। ऐसे में अगर सोचे की कोई दूसरा काम भी कर लें तो नहीं कर सकते। एक महीने में एक हज़ार रुपए मिलते हैं। वह भी हर महीने नहीं मिलता। इस बार पांच महीने से पैसा नहीं मिला है। कोई बचत तो होती नहीं जो हर महीने मानदेय न भी मिले तो खर्च चल जाए।
ब्लाक मऊ, गांव हटवा। यहां के पूर्व माध्यमिक स्कूल में सुंता और प्रेमा खाना बनाती हैं। उन्होंने बताया कि अक्टूबर 2014 से खाना बनाने का रुपए नहीं मिला है। इस कारण से एक-एक रुपए के लिए परेशानी उठानी पड़ती है। अपने बच्चों को नए कपड़े भी सिलवाने थे। क्योंकि परिवार में अप्रैल के महीने में शादी होनी है। पर देखो अब क्या करते हैं?
मऊ बी.आर.सी. विभाग के समन्वयक मार्तण्ड शुक्ला ने बताया कि खाना बनाने वाली रसोइयों के मानदेय के लिए बेसिक शिक्षा विभाग में दरखास दी थी। वहां से जब रुपए आएगा तभी मिलेगा।
बेसिक शिक्षा विभाग के जिला समन्वयक ज्ञानेन्द्र मिश्रा का कहना है कि 20 मार्च को हेडमास्टर और प्रधान के खाते में छह महीने का रुपए भेज दिया गया है। स्कूल के मास्टर उनको चेक बना के दें। जब हेडमास्टर से पूछा गया तो उनका कहना था कि अभी रुपया नहीं आया है।