कई बार स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में कमियां पाई जाती हैं – कभी डाक्टर नहीं होते तो कभी जऋरूरी दवाएं। जिले में स्वास्थ्य विभाग से सवाल किया जाता है पर कई बार विभाग खुद बजट के इंतज़ार में बैठे रहते हैं।
जिला चित्रकूट के मानिकपुर में एक भी महिला विशेषज्ञ डाक्टर नहीं है। कई मरीज़ इलाहाबाद और कानपुर जाने को मजबूर हैं। मानिकपुर के अधीक्षक डाक्टर प्रतीक कुमार ने कहा कि गम्भीर स्थिति में मरीज़ों को रिफर करना उनकी मजबूरी है।
अपर सी.एम.ओ. ने बताया कि सिर्फ दो महिला डाक्टर हैं जो जिले में बैठती हैं। कई बार यू.पी. सरकार से मांग की है पर अब तक कुछ नहीं किया गया है।
जिला बांदा के पैगम्बरपुर माृत एवं शिशु परिवार कल्याण उपकेन्द्र में प्रसव कराने वाले कमरे की छत और दीवालों के जोडों में दरारे हैं। बिजली की व्यवस्था तो है लेकिन हमेषा बिगड़ी बनी रहती है। बिजली की तार को ज़मीन से अर्थ दिया गया है। जिसमें हमेषा खतरा रहता है। यहां पर गन्दगी बहुत ही गन्दगी थी।
महोबा जिले के कबरई ब्लाक के गहरा गांव के एक कोने में उपकेन्द्र बनाया गया है। यह उपकेन्द्र हमेशा बंद पड़ा रहता था। पूछने पर गांव के लोगों ने बताया कि इतने वीराने में बने केन्द्र में ना ए.एन.एम. अकेले बैठ सकती है और ना ही लोग जाना पसंद करते हैं।
महोबा के सी.एम.ओ. डाक्टर एस.के. वाष्णेय ने महीने भर पहले पद संभाला है। उन्होंने बताया कि जिले में अनेस्थेटिस्ट (आपरेशन के पहले बेहोश करने वाले खास डाक्टर) ही नहीं हैं, नतीजन कोई बड़ा आपरेशन हो तो रिफर करने को मजबूर हैं।
फैज़ाबाद के जिला महिला अस्पताल में बारह महिला डाक्टर के पद में से आठ पर या तो कोई नियुक्त नहीं है या डाक्टर आती ही नहीं हैं। सभी मरीज़ों को चार महिला डाक्टर सम्भालती हैं।