एक बार एक लड़का मुझे बता रहा था कि किस तरह उसने एक लड़की का यौन शोषण होने से बचाया। उसने दूर से देखा कि एक लड़का लड़की को छेड़ रहा है। वो भागता हुआ उनकी तरफ गया तो उसको देख कर वह लड़का भाग गया उसे भागता देख ये उसके पीछे गया और उसकी पिटाई कर दी। उसकी पूरी कहानी में उसने मुझे ये नहीं बताया कि लड़की का क्या हुआ। वो ठीक थी या नहीं। जिस तरह उसने वो कहानी सुनाई मुझे यकीन हो गया कि वो पूरी तरह उसके अपने बारे में उसकी बहादुरी के बारे में थी। उस लड़की से उसका कोई लेना देना नहीं था। अगर में कभी इस तरह की मुसीबत में पड़ जाऊं कि अपना बचाव न कर पाऊँ तो में ज़रूर चाहूंगी कि कोई मुझे बचाए मगर वो हमलावर से ज़्यादा मेरी फ़िक्र करे। और अगर मुझे बचने वाला कोई आदमी हो तो में इस पूरी कहानी को थोड़ा काम बधाई देने वाली बनाना चाहूंगी। इस तरह की कहानी नहीं जिसमे ‘एक आदमी ने दूसरे आदमी से मुझे बचाया’ . और अंत में में ये भी चाहूंगी की वो औरतों को कमज़ोर न समझे। और बताना शुरू कर दे कि कहाँ जाना या नहीं जाना चाहिए। क्योंकि औरतों की सुरक्षा को उनको नियंत्रित करने के हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता है।
औरतों को कमज़ोर न समझे
आप हमसे दर की ज़िंदगी जीने की तो उम्मीद नहीं कर सकते। हम कई बार सोच समझ कर खतरे भी उठती है। इस बात को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के हॉस्टल में रहने वाली एक लड़की ने वाईस चांसलर को लड़कियों के हॉस्टल पर लगाये प्रतिबंधों के खिलाफ लिखे पत्र में कुछ इस तरह लिखा :
‘हाँ में समझती हूँ की शहर असुरक्षित है। मगर एक युवा लड़की होने के नाते कम से कम मुझे का निर्णय करने दीजिये की में इस शहर में कैसे रहूंगी, घूमूंगी, काम करूंगी और प्यार करूंगी। हर रोज़ में निर्णय करती हूँ के है , कहा जाना है , कहा चलना है, ट्रांसपोर्ट लेना है , किसे मिलना है। कई बार में बहुत बहादुर बन जाती हूँ कई बार मे अपने ऊपर रोक लगती हूँ। मगर इस निर्णय को मेरा रहने दीजिये। मुझे सीखने दीजिये.