देश में बलात्कार की बढ़ती घटनाएं और कानूनी फैसलों में होने वाली देरी से साफ है कि सरकारें और प्रशासन ऐसे मसलों पर गंभीर नहीं हैं। इन सबके बीच सरकार में शामिल नेताओं की बयानबाजी से स्पष्ट होता है कि जेंडर आधारित हिंसा और भेदभाव को लेकर संवेदनहीनता की स्थिति है। इस तरह की टिप्पणियां जब खुलेआम की जाती हैं तो पता चलता है कि औरतों के खिलाफ किस तरह की मानसिकता समाज में जड़ जमाए है। हाल में हुए लोकसभा चुनाव में मुरादाबाद रैली के दौरान समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने एक बलात्कार मामले में कहा था कि लड़कों से गल्तियां हो जाती हैं, अक्सर जब लड़के और लड़की के बीच दोस्ती खत्म हो जाती है तो लड़कियां बलात्कार का आरोप लगा देती हैं। समाजवादी पार्टी के एक दूसरे वरिष्ठ नेता अबू आजमी तो इससे भी एक कदम आगे बढ़ गए उन्होंने कहा कि ऐसी कोई औरत जो खुद की मर्जी या बिना मर्जी के किसी पुरुष के साथ जाती है और उसका बलात्कार होता है तो औरत को भी सजा होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री रामसेवक पइकरा ने भी ऐसा ही कुछ कहा, उन्होंने कहा कोई जानबूझकर बलात्कार नहीं करता, धोखे से हो जाता है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने बेंग्लुरु में छह साल की लड़की के बलात्कार मामले में कहा कि क्या मीडिया के पास और कोई मुद्दा नहीं है। ऐसी बयानबाजी से जनता के बीच एक संदेश पहुंच रहा है कि राजनीतिक पार्टियां जेंडर आधारित हिंसा को लेकर गंभीर नहीं हैं। औरतों के खिलाफ भेदभाव उन्हें मुद्दा नहीं लगता। लेकिन सत्ता में मौजूद किसी भी पार्टी को यह समझना चाहिए कि लोगों में गुस्सा लगातार बढ़ रहा है। ध्यान रहे यह गुस्सा धरना-प्रदर्शनों से आगे सत्ता में बदलाव का कारण भी बन सकता है।
औरतों के खिलाफ हिंसा पर संवेदनहीन राजनेता
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