विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार, जब लड़कियां और महिलाएं कमाती हैं, तो उसका 90 फीसदी वह परिवारों और समुदायों में निवेश करती हैं। लेकिन क्या महिलाओं का काम करने और निर्मला के घर में भोजन के वितरण के तरीके को बदलने के बीच संबंधों को पहचानने और प्रभावित करना संभव है?
बेंगलुरु और नई दिल्ली में स्थित ‘गुड बिजनेस लैब’ (जीबीएल), कर्मचारियों के कल्याण के साथ-साथ व्यवसायिक रिटर्नों को सक्षम करने के लिए मूल्यांकन और सूचित करने के लिए काम करता है। जीबीएल महिला श्रम शक्ति भागीदारी पर कपड़ा उद्योग में तकनीकी कौशल और नौकरियों के प्रभावों, महिलाओं के समय का उपयोग और महिलाओं और उनके परिवारों के कल्याण की जांच कर रहा है।
भारत में महिला श्रम शक्ति भागीदारी 2005-06 में 36 % से गिर कर 2015-16 में 24 % तक हुआ है। देश के श्रमिक बाजार में महिला श्रमिकों लाभ के मामले में पीछे है। वे कम-उत्पादकता, कम-भुगतान वाले कार्य में लगे कम-कुशल श्रमिकों में हैं। देश में 17 % महिलाओं के नाम जमीन है। सिर्फ 16 % ने काम के लिए शहर के बाहर पलायन करने की सूचना दी है और केवल 5 % ने ऐसा अकेले किया है। भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) 2012 के आंकड़ों में 80 % ने कहा कि उन्हें स्वास्थ्य केंद्र जाने के लिए परिवार के किसी सदस्य से अनुमति की आवश्यकता है। भारत में केवल 5 % महिलाओं का कहना है कि पति चुनने पर उनका नियंत्रण है। शादी और प्रसव के समय कम आयु भी श्रमशक्ति में शामिल होने वाली महिलाओं के लिए एक चुनौती के रूप में उभरा है।
भारत का श्रम बल, चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा है। हालांकि, भारत की 90 % श्रमशक्ति औपचारिक रूप से प्रशिक्षित नहीं है, जबकि चीन के लिए यह आंकड़े 47 % है। परिधान उद्योग में महिलाओं के लिए और अधिक नौकरियां हो सकती हैं, जहां महिलाएं पहले से ही 35 % कर्मचारियों की संख्या काम पर हैं।
लेख साभार: इंडियास्पेंड