मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मीला ने 9 अगस्त को अपनी सोलह साल से लगातार चली आ रही भूख हड़ताल को समाप्त कर दिया। अफ्स्पा कानून के खिलाफ लड़ाई जारी रखने के लिए अब इरोम मणिपुर में चुनाव लड़ेंगी। आइये एक नजर डालते हैं उनके संघर्षशील सफ़र पर।
इरोम चानू शर्मीला का जन्म 1972 में मणिपुर राज्य में हुआ। 5 नवम्बर सन 2000 से इरोम अफ्स्पा कानून के विरोध में भूख हड़ताल पर बैठी हैं। इरोम ने 500 हफ्ते तक ना पानी पिया, ना खाना खाया, इसलिए इनके संघर्ष को दुनिया की सबसे लम्बी भूख हड़ताल माना जाता है।
अफ्स्पा कानून क्या है? एक ऐसा कानून है जिसे केंद्र सरकार ने देश के कुछ अशांत प्रान्तों में लागू किया है। मणिपुर का लगभग पूरा हिस्सा इस कानून के अंतर्गत आता है। इस अधिनियम द्वारा भारतीय सेना को कुछ विशेष अधिकार मिले हुए है जिसमें सेना बिना वारंट के किसी के भी घर में छानबीन कर सकती है और सिर्फ ‘शक’ होने पर किसी व्यक्ति को गोली भी मार सकती है।
मणिपुर में सेना ने अफ्स्पा कानून का दुरुपयोग किया है। जिसके खिलाफ लोगों ने लगातार विरोध प्रदर्शन किया है। उन विरोधियों में से एक इरोम भी हैं। सन 2000 में 2 नवम्बर को मालोम नाम के एक शहर में सेना ने बस स्टैंड पर खड़े दस नागरिकों को गोली मार दी थी। कथित तौर पर यह असम राइफल्स ने किया था। इस कांड को ‘मालोम नरसंहार’ के नाम से जाना जाता है।
‘मालोम नरसंहार’ के समय इरोम की उम्र 23 साल थी। तीन दिन बाद, 5 नवम्बर को इरोम ने भूख हड़ताल पर जाने के ऐलान किया। उनका कहना था कि “जब तक अफ्स्पा कानून को मणिपुर से हटाया नहीं जाएगा तब तक में खाना नहीं खाऊँगी, पानी नहीं पीयूंगी, अपनी माँ से बात नहीं करुँगी, ना ही अपने बाल सवारुंगी और ना ही आईना देखूंगी। ”
इरोम के भूख हड़ताल शुरू होने के ठीक तीन दिन बाद पुलिस ने उन्हें यह कहकर गिरफ्तार किया कि उन्होंने अपनी जान लेने की कोशिश की है। कानून के अनुसार, आत्महत्या करने का प्रयास गैरकानूनी माना जाता है। इसी बीच, इरोम की हालत अधिक बिगड़ने लगी और उन्हें जीवित रखना मुश्किल हो रहा था और उनके नाक के जरिए भोजन दिया जाने लगा।
2004 में मनोरमा नाम की मणिपुरी महिला असम राइफल्स द्वारा किये गए फर्जी मुठभेड़ का शिकार बनी थी। जिसके विरोध में मणिपुर की माताओं ने सेना के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। उन्होंने बिना कपड़ों के, सिर्फ एक ध्वज से अपना शरीर ढककर प्रदर्शन किया। इस ध्वज पर लिखा था “भारतीय सेना हमारा बलात्कार करो, हमे मार डालो”। इस शक्तिशाली प्रदर्शन के बाद इम्फाल के सात क्षेत्रों से अफ्स्पा कानून को हटाया गया।
सोलह साल के संघर्ष के बाद इरोम ने अपनी भूख हड़ताल समाप्त की। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह अफ्स्पा कानून के खिलाफ लड़ना बंद कर देंगी। इरोम ने अपने संघर्ष को आगे बढाने के लिए लोकतंत्र को चुना है। उनकी मांगे अभी भी वहीं हैं। वह अभी भी मणिपुर से अफ्स्पा कानून को हटाने के लिए प्रयासरत हैं और उसके लिए लड़ती रहेंगी।
साभार: ईटा मेहरोत्रा