जिला बाँदा , गांव बड़ोखर खुर्द 28. अक्टूबर 2016। बुंदेलखंड के प्रसिद्ध नृत्य देवारी का अभिनय बुंदेलखंड़ में दशहरा से शुरु होकर दीपावली के बाद तक चलता है। देवारी नृत्य के ये कलाकार चटकीले रंगों से सजे-धजे, करतब दिखाते बाँदा की गलियों में दिखाई देते हैं। इस नृत्य को बिना बोले किया जाता है।
आधुनिकता के बहाव में कभी कभी विरासत पीछे छूट जाती है, पर देवारी नृत्य को जीवित रखने वालों में से है बड़ोखर खुर्द के देवारी नृत्य कलाकार रमेश पाल, उम्र 45। जब बुंदेलखंड़ में लोग देवारी नृत्य को भूल गए थे, तो उस समय रमेश पाल नृत्य करने के साथ यह अपने आने वाले भविष्य, यानि बच्चों को भी देवारी नृत्य सिखा रहे थे। आज देश में इस नृत्य को पहचान दिलाने के बाद, रमेश पाल का सपना है कि वह इसे अंतराष्ट्रीय पहचान भी दिलाए सकें । वह कहते हैं, “जब मुझे पता चला कि संस्कृति मंत्रालय लोक नृत्यों को बढ़ावा देते हुए देश के अलग-अलग प्रदेशों में अपने नृत्य को दिखाने का मौका देती हैं, तो मैंने भी खूब मेहनत करके ये अवसर प्राप्त किया। आज मैं भी लखनऊ, बनारस़, दिल्ली जैसे शहरों में नृत्य दिखाने के लिए जाता हूं।”
अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए, वह बताते है कि वह गांव-गांव में पैदल और साइकिल से घूम-घूमकर लोगों को नृत्य दिखाते थे। रमेश जी ने इस नृत्य विधा को आगे बढ़ाने के लिए 4 साल कड़ी मेहनत की थी और आज उसका नतीजा है कि सब उन्हें देवारी नृत्य के नाम से जानते हैं।
रमेश पाल की देवारी नृत्य मंडली में 100 शिष्य हैं और ये शिष्य पढ़ाई के साथ देवारी नृत्य को सीखने का काम भी करते हैं। इन ही कुछ शिष्यों में से है प्रदीप, उम्र 10, “मैं पढ़ाई के साथ इस नृत्य को सीखने का भी काम करता हूं।”
बीए के छात्र सुनील, उम्र 19, नृत्य को सीखने के लिए सुबह 4 बजे उठकर 1 घण्टा अपनी पढ़ाई करने के बाद देवारी नृत्य का अभ्यास करते हैं। सुनील देवारी नृत्य के ज़रिये बुंदेलखंड का नाम रोशन करना चाहते हैं। सुनील के तरह रमेश, उम्र 19, भी देवारी नृत्य करते हैं। घरवालों का प्रोत्साहन मिलने की बात भी बताते हैं।
कंधी, उम्र 70, देवारी नृत्य में ढोलक बजाने का काम करते हैं और उन्होंने ये काम अपने पिताजी से सीखा है। वह बताते हैं, “बचपन में मैं अपने पिताजी के साथ जाता था और धीरे-धीरे मैं खुद ही ढोलक बजाने का काम करने लगा।”
रिपोर्टर- मीरा देवी
29/10/2016 को प्रकाशित