हर साल 8 मार्च के आते ही रिवाजी तौर पर बनता है, अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस। सामाजिक सोच में महिला-पुरुष के बीच अंतर की दीवार इतनी बड़ी है की वो शायद इस एक दिन से तो नहीं गिर सकती है। इसे गिराने के लिए हर दिन ऐसा दिन बनाना होगा। शहरों में महिलाएं इस दिन को एक जश्न की तरह मनाती हैं और परिवार के सदस्य, दोस्त, सब उन्हें बधाई देते हैं। आज तो बन गई आपके घर की महिला खास पर क्या आम दिन में आप उन्हें इंसान का दर्जा भी देते हैं? शायद इस जवाब पर इन्ही परिवार वालों, दोस्तों और शुभ चिंतकों की आवाज़ इतनी बुलंद न आए। इस रिवाजी महिला दिवस में हम आपको गांवों की महिलाओं के संघर्ष की कहानी बताएंगे। जहां महिला का घर के पुरुष के सामने कुर्सी या खाट पर बैठना तक मना है। ये गांव हमारे सबसे बड़े प्रदेश यानि उत्तर प्रदेश के हैं।
बांदा जिले के माटा गांव में शादी होकर आई केला ने कभी नहीं सोचा होगा कि उसका पति चुन्नू उसे हर छोटी बात पर मार सकता है। खैर 20 साल तक गाली-गलौच और घरेलू हिंसा को केला ने झेला, पर झेलने की भी एक हद होती है। केला हर दिन की इस हिंसा से तंगकर चले गई मायके। पर चुन्नू को न तो अपने इस काम पर दुख हैं और न अफसोस। बल्कि वो तो इसे अपना हक मानता है। केला और चुन्नू का जीवन ऐसे ही चल रहा है, क्योंकि केला के मायके वाले भी समझा बुझाकर केला को चुन्नू के घर भेज ही देतें हैं।
ये तो बात महिला हिंसा की थी, लेकिन हमारी बेटियां भी सुरक्षित नहीं हैं। बांदा जिले के खपटिहा कलां इंटर कालेज में पढ़ने वाली लड़की का स्कूल जाना इसलिए बंद करा दिया गया क्योंकि उसके पीछे चंदू नाम का लड़का पड़ गया था। लव लेटर देता ये लड़का लड़की को रोज परेशान करता था। परेशान लड़की ने कई दिन तक बात किसी को नहीं बताई, लेकिन एक दिन अपने परिवार को वे लेटर दिखा दिए। फिर क्या था? लड़की का उस दिन से स्कूल जाना बंद कर दिया गया। हमारे देश में लगभग 52 प्रतिशत लड़कियों के स्कूल छोड़ने की वजह इस तरह सुरक्षा का अभाव ही है। ऐसी ही घटना चित्रकूट के बरगढ़ कस्बे में सामने आई जब मदरसे में अरबी पढ़ाने वाले बाबा कुतुबउद्दीन पर आठ लड़कियों ने छेड़खानी का आरोप लगया। इस खबर के फैलते ही लड़कियों का मदरसा जाना बंद करवा दिया गया।
महिलाओं पर हिंसा और सामाजिक दबाव कितना है, ये बात आपको गुडिया की कहानी भी बता देगी। गुडिया के पति ने गुडिया की नाक हसिया से काटने की कोशिश की साथ ही उस पर गर्म तेल भी फेंक दिया। तेल से जली गुडिया अपने पिता के घर आ गई। जहां भी उसपर दवाब ये की पति का घर ही तेरा घर है। सब भुलाकर पति के पास चली जा, यही सलाह दी गई। गुडिया के साथ ये हिंसा पहली बार नहीं हुई थी वो पहले भी ऐसी हिंसा झेलती रहती है, पर मायके वालों ने कभी पति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं की। गुडिया के साथ हुई इस हिंसा का कारण उसका समय से खाना न बनाना था। ‘अच्छी महिलाओं’ से जो सामाजिक और पारिवारिक उम्मीदें हैं, उन पर गुड़िया खरी नहीं उतरी।
ये ऐसी घटनाएं हैं, जो हर गांव की गली में आपको होते दिख जाएगी। उत्तर प्रदेश पुलिस के अनुसार हर रोज यू पी 100 नंबर में 10,000 केस आते हैं ये घरेलू हिंसा के केस होते हैं जिनमें से 81 प्रतिशत तो यहीं हल हो जाते हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि महिला दिवस बनाने के बाद भी हम कितना बदले हैं। इन हालतों में तो रोज ही महिला दिवस मनाने की जरूरत है।
– अल्का मनराल