अगस्त को गोरखपुर के बी आर डी अस्पताल में 70 से अधिक बच्चों और नवजात की मौत हो गई। अस्पातल में ऑक्सीजन की कमी के कारण, कई मासूमों की जान गई, और उनके माता-पिता, घर-परिवार वालें, अब तक शोक में है। यक़ीनन इस त्रासदी को वे शायद ही कभी भुला पायें।
लेकिन ऐसी घटनाएं यूपी में आम बात की तरह है। हर साल इस मौसम में एन्सेफलाईटिस बीमारी (वायरल बीमारी जो दिमागी बुखार बन जाता है) का प्रकोप रहता है, लेकिन इस साल बी आर डी अस्पताल में हुई घटना सुर्ख़ियों में इसलिए छाई हुई है, की ऑक्सीजन की कमी को एक नया कारण बताया जा रहा है।
लेकिन ये बात नई नही है। सरकारी अस्पतालों में इस तरह की कमियां बहुत सामान्य बात है। और सिर्फ उपलब्धियों की कमियां नहीं, बुंदेलखंड में सरकारी अस्पतालों और डॉक्टरों की मरीज़ के प्रति एक लापरवाही का रवैय्या भी रहता है।
2012 में हमारे साथ ही गुजरी ऐसी एक घटना, जिसमें एक नन्ही बच्ची की जान चली गई। इस सदमे को हम सब ने पास से अनुभव किया, और अपनी निराशा को एक खुले ख़त के रूप पेश किया। अन्य भी लापरवाही की घटनाओं को जोड़ते हुए, हमने इस ख़त को यूपी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के नाम लिखा।
प्रस्तुत है उस ख़त का एक एडिटेड रूप।
ये दुःख की बात है की ये खुला ख़त आज भी ठीक उसी सन्दर्भ में लागू किया जा सकता है, जिस सन्दर्भ में हमने इसे पांच साल पहले लिखा था।
क्योंकि सरकारें आती जाती, बदलती रहती हैं, लेकिन गरीब इंसानों के प्रति इन्साफ कभी भी नहीं होता।
माननीय मुख्य चिकित्सा अधिकारी जी
महोदय, पिछले कुछ दिनों से बांदा और चित्रकूट जिले में कुछ इस तरह के हादसे हुए है की हम पत्र लिखने को मजबूर हो गए हैं। इन घटनाओं के बारे में कुछ लोगों ने बताया तो कुछ घटनाओं के शिकार हम खुद हुए है।
15 जून 2012 की रात हमारे साथ बहुत दर्दनाक घटना घटी। उस समय हमारी साथी श्रद्धा के तीन महीने की बच्ची श्रेया स्वास्थ्य व्यवस्था के अनदेखी का शिकार हो गई। उस समय हम आठ डाक्टर और कई अस्पताल के चक्कर लगाने के बाद भी नन्हीं श्रेया को नहीं बचा पायें। उसका समय से इलाज हो जाता तो शायद वो बच जाती।
इसके अलावा 8 से 24 जुलाई को दिल दहला देने वाली एक और घटना हुई है। 8 जुलाई को करतल के अनीता के घर में बच्चा पैदा होने से उसकी हालत बिगड़ गई। तब उसको नरैनी के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में दो घंटे तक भर्ती नहीं किया जिससे उसकी तुरंत मौत गई।
इसी तरह का एक और हादसा 21 जुलाई 2012 को नरैनी के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में हुआ था। नरैनी के गोरे पुरवा का रहने वाला शानू को फुड़िया निकली रही। चिकित्सा अधिकारी डाक्टर बृजेन्द्र राजपूत ने इंजेक्शन लिखा था। फार्मेसिक डाक्टर रामनरेश पाण्डेय के इंजेक्शन लगाते ही 9 साल के शानू कि मौत हो गई।
तीसरा हादसा महोखर गांव के गर्भवती विधा के साथ 24 जुलाई 2012 को हुआ। विधा को बाँदा के महिला जिला अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया।इस कारण उसका बच्चा रोड में ही पैदा हो गया और कुछ देर बाद बच्चे की मौत हो गई। परिवार वाले विधा को महिला जिला अस्पताल ले गये। तब वहां के डाक्टर ने कहा आपरेशन से बच्चा होगा खून की कमी है ये कह के भगा दिया था।
हाल में ही फिर एक हादसा हुआ है। जुलाई 2012 को चित्रकूट के मानिकपुर के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के गेट के बाहर नीतू ने बच्चे को जन्म दिया। डाक्टर उसको भर्ती करने के बाद रुपिये न दे पाने के कारण भगा दिया था।
ये सारी घटनाएं पिछले कुछ 15 दिन में ही हुई हैं। इन सभी घटनाओं की ओर हम आपका ध्यान लाना चाहते है। सही जांच, सही इलाज, सही दवाई से लोगों की जान बचाई जा सकती है।
पिछले 15 दिनों में घटी इन घटनाओं की जांच कराई जाए – श्रेया के मौत के कारण जो सवाल उठे है उसके जिम्मेदार डाक्टर से जवाबदेही ली जाये। स्वास्थ्य विभाग कि अव्यवस्था और डाक्टरों की गैर जिम्मेदारी को अनदेखा न किया जाये। अस्पताल में जो कमी है उनको पूरा किया जाये। रास्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत मिलने वाली सुविधाएं बांदा और चित्रकूट जिलें में दी जाए।
आपसे मदद की उम्मीद में
खबर लहरिया समूह