‘‘हमारी भावनाएं दूसरों से ली हुई हैं और हमारा प्यार निर्मित है। हमारे विश्वास पक्षपात से भरे हैं। हमारी मौलिकता की पुष्टि कृत्रिम कला से होती है। एक आदमी की अहमियत उसकी तात्कालिक पहचान और निकटतम सम्भावना तक घटकर रह जाती है। एक वोट तक। एक संख्या तक। एक चीज़ तक। कभी एक आदमी के साथ उसके दिमाग को देखते हुए व्यवहार नहीं किया जाता।’’
ये दलित शोध छात्र रोहित वेमुळे के आत्महत्या के समय लिखे गए पत्र में से एक अंश है। 18 जनवरी को रोहित ने अपने दोस्त के कमरे में अपनेआप को पंखे से लटका कर फांसी दे दी। उसकी आत्महत्या के बाद के दिनों में कई तथ्य सामने आए। और हज़ारों शब्द लिखे और बोले गए ताकि रोहित के दिमाग को समझा जा सके। ताकि हर दलित विद्यार्थी को भारतीय विश्वविद्यालयों में किन हालातों से गुज़ारना पड़ता है समझा जा सके। और हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ए बी वी पी) के सदस्यों, राज्य मंत्री बंदारु दत्तात्रेय और मानवीय संसाधन विकास मंत्रालय की सहअपराधिक्ता और कपट सामने लाया जा सके। रोहित की आत्महत्या इस रोज़मर्रा के जाति वर्गीकरण और जाति पर आधारित अत्याचार को बनाए रखने में हमारी सहअपराधिक्ता भी दिखाती है। उसके शक्तिशाली शब्द बताते हैं कि कैसे जाति का ज़हर हमारे अंदर तक भरा हुआ है और हमारे कृत्यों में नज़र आता है। इसके अलावा हम और कैसे व्याख्या कर सकते हैं कि थोराट, कृष्णा, और पावराला कमिटी रिपोर्टों पर ध्यान क्यों नहीं किया गया? और हम कैसे व्याख्या कर सकते हंै कि हैदराबाद कैंपस में एक दलित विद्यार्थी की आत्महत्या लोकतान्त्रिक रूप से चुनी गई केंद्रीय सरकार में सबसे ऊपर के सोपानक तक पहुंच रही है?
अगर रोहित की आत्महत्या ने उच्च शिक्षा में दलितों के साथ चल रहे भेद भाव को खोल कर सामने रख दिया है तो इसने उन हज़ारों विद्यार्थियों और टीचरों को भी आवाज़ प्रदान की है जो रोज़ इस भेदभाव से जूंझ रहे हैं। जैसा कि एचसीयू टीचर फेलो कार्तिक बिट्टू ने लिखा है, ‘दलित विद्यार्थियों की संस्थागत हत्याओं के कारण इस पूरे देश में आग लगी है, ऐसा आज से पहले कभी नहीं हुआ था।’ रोहित के लिए, हर उस विद्यार्थी के लिए जिसने इस भेदभाव को झेला है। इस प्रदर्शन को रुकने न दो, इस मशाल को बुझने न दो।