इस्मत चुग़ताई (जन्म: 15 अगस्त, 1915 – मृत्यु: 24 अक्टूबर, 1991)
इस्मत चुग़ताई भारतीय साहित्य में एक चर्चित और सशक्त कहानीकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने महिलाओं से जुड़े मुद्दों को अपनी रचनाओं में बेबाकी से उठाया और पुरुष प्रधान समाज में उन मुद्दों को चुटीले और संजीदा ढंग से पेश किया।
आलोचकों के अनुसार इस्मत चुग़ताई ने शहरी जीवन में महिलाओं के मुद्दे पर सरल, प्रभावी और मुहावरेदार भाषा में ठीक उसी प्रकार से लेखन कार्य किया है, जिस प्रकार से प्रेमचंद ने देहात के पात्रों को बखूबी से उतारा है।
गुरु के रूप में इस्मत के भाई मिर्ज़ा आजिम बेग ने उनके लेखन के गुर सिखाये।
इस्मत ने अपने लेखन में ठेठ मुहावरेदार गंगा-जमुनी भाषा का इस्तेमाल किया, जिसे हिन्दी-उर्दू की सीमाओं में क़ैद नहीं किया जा सकता। उनका भाषा प्रवाह अद्भुत था। इसने उनकी रचनाओं को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस्मत चुग़ताई अपनी ‘लिहाफ’ कहानी के कारण ख़ासी मशहूर हुईं। 1941 में लिखी गई इस कहानी में उन्होंने महिलाओं के बीच समलैंगिकता के मुद्दे को उठाया था। उस दौर में किसी महिला के लिए यह कहानी लिखना एक दुस्साहस का काम था। इस्मत को इस दुस्साहस की कीमत चुकानी पड़ी, क्योंकि उन पर अश्लीलता का मामला चला, हालाँकि यह मामला बाद में वापस ले लिया गया।
यूँ तो उन्होंने ‘जिद्दी’, ‘लिहाफ’, ‘सौदाई’, ‘मासूमा’, ‘एक क़तरा खून’ जैसे कितने ही उपन्यास लिखे, किंतु सबसे ज़्यादा मशहूर और जिसका विरोध हुआ, वह ‘टेढ़ी लकीर’ है। इस्मत ने ‘टेढ़ी लकीर’ के ज़रिये समलैंगिक रिश्तों और उसके कारणों पर नज़र डालने पर मजबूर किया। ये ऐसा समय था जब समलैंगिक रिश्तों के बारे में कोई बात नही करता था ऐसे में इस्मत ने एस मुद्दे पर इस्मबड़ी खूबसूरती से लिखा ।
चुग़ताई ने ‘कागजी हैं पैरहन’ नाम से एक आत्मकथा भी लिखी थी।
इस्मत को ‘टेढ़ी लकीर’ के लिए ‘गालिब अवार्ड’ (1974) में मिला। इसके साथ ही ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘इक़बाल सम्मान’, ‘नेहरू अवार्ड’, ‘मखदूम अवार्ड’ मिला।