इलाहाबाद में संगम के तट पर मनाया जाने वाला माघ मेला हिंदुओं का एक बहुत महत्वपूर्ण पर्व होता है। संगम जहां भारत की तीन नदियां मिलती हैं। गंगा, यमुना और सरस्वती। इस बार मेला 14 जनवरी से शुरू होकर 28 फरवरी तक चला। हज़ारों की भीड़ इकट्ठा हुई। साधू संत समेत विदेश से भी लोग आते हैं।
हफ्तों पहले से लोग अपने तंबू यहां लगा लेते हैं। और फिर मेला खतम होने तक यहीं रहते हैं। उत्सव मने, खूब लोग खुशी मनाएं। लेकिन इनमें से एक नदी अब गायब हो गई है। अगर ऐसे ही गंदगी बढ़ती गई तो क्या पता दो बची नदियां भी खतम हो जाएं?
उत्सव मनें पर नदियों में गंदगी न हो यह ख्याल भी रखना जरूरी है। नहीं तो क्या पता गंगा और यमुना भी गायब हो जाएं। फिर कैसा संगम और कैसा माघ मेला? उत्सव चाहे धार्मिक हो या फिर सामाजिक हमारे देश की प्राकृतिक संपदा को नुकसान पहुंचाना गुनाह है।