भारत के मंगल अभियान की शुरूआत 5 नवंबर को हुई। मंगल तक भारत की छलांग उसकी वैज्ञानिक तरक्की का मजबूत उदाहरण है। मजेदार बात ये भी है कि पिछले साल यानी 2012, अगस्त में ही इस अभियान को शुरू करने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजू़री दी थी। करीब पंद्रह महीने ही लगे इसे शुरू करने में।
इतना बड़ा अभियान जिसे अब तक केवल रूस और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों में ही शुरू किया गया था, उसे भारत में शुरू करना वाकई सराहनीय है। इससे भारत सरकार को सीख भी लेनी चाहिए। यहां कई योजनाएं शुरू होने का इंतजार ही करती रहती हैं। शुरू हो भी जाती हैं तो तय समय में पूरी नहीं हो पाती हैं। मनरेगा, राशन वितरण प्रणाली इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं।
बीमारियों की बात करें तो आज भी भारत में हर साल दो लाख लोगों को मलेरिया होता है। इनमें से एक हज़ार की मौत हो जाती है। डेंगू, चिकनगुनिया भी हर साल तय समय में फैलती ही हैं। इन सारी बीमारियों के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारण पीने के साफ पानी का न होना है। भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में इसे 2010 तक खत्म करने का लक्ष्य रखा गया था। पर लक्ष्य नहीं पाने के कारण समयसीमा बढ़ाकर साल 2015 करनी पड़ी।
ये कुछ उदाहरण हैं। अगर मंगल पर पहुंचने जैसा कठिन काम समय पर हो सकता है तो योजनाओं को पूरा करने का काम क्यों नहीं? आकाश में छलांग लगा चुके देश के लिए कोने-कोने तक स्वच्छ पानी पहुंचाना क्यों मुश्किल है? गांवों में बिजली पहुंचाने में हम आज भी क्यों असफल हैं? चांद के बाद मंगल पर पहुंचना प्रशंसा का विषय है, लेकिन हमें इन पर भी विचार करना चाहिए। इससे क्या ये नहीं लगता कि मंगल अभियान क्योंकि राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुरंत चर्चा का विषय बन जाता है। लगता है कि इस ही लिए ये सरकार के लिए एक प्राथमिकता है।
इन सवालों पर भी विचार
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