संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में अपनी तरफ का एक सर्वे पहली बार पेश किया गया जिसमें भारत में अनचाही लड़कियों की संख्या का अनुमान पेश किया गया है। यह आंकड़े नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की विकास अर्थशास्त्री सीमा जयचंद्रन द्वारा 2017 में प्रकाशित कागजात के एक समूह पर आधारित हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि बेटे की चाहत गर्भपात का कारण नहीं है।
इस सर्वे में अनचाही लड़कियों की संख्या 21 मिलियन यानी 2 करोड़ 10 लाख बताई गई है। यह संख्या सेक्स रेसियो ऑफ लास्ट चाइल्ड (एसआरएलसी,यानी अंतिम बच्चे के आधार पर आंकड़े जुटाना) के आधार पर बताई गई है। इससे यह साफ जाहिर होता है कि माता–पिता तब तक लड़कियों को पैदा करते हैं जब तक की लड़का न हो जाए।
सर्वेक्षण में बताया गया है कि अनचाही लड़कियों (वर्तमान जनसंख्या के 0-25 आयु वर्ग में) की बड़ी संख्या बेटे की चाहत का प्रत्यक्ष परिणाम है, जहां माता–पिता एक बेटी होने के बाद बच्चे पैदा करना नहीं रोकते।
देश में जन्म के समय प्राकृतिक लिंग जानने का अनुपात प्रत्येक लड़की के लिए 1.05 लड़का है।
सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारत में, आखिरी बच्चे का लिंग अनुपात पुरुष के मुकाबले पहले जन्म के लिए यह 1.82, दूसरे जन्म के लिए 1.55 और तीसरे बच्चे के लिए 1.65 पर है।
2005-06 और 2015-16 के बीच आखिरी जन्म (हर 100 जन्म पर महिलाएं) का लिंग अनुपात केवल 39.5 प्रतिशत से 39 प्रतिशत बदला है। यह सर्वेक्षण में इस्तेमाल किए गए 17 लिंग सूचकों में से एक है जो कि संपत्ति में वृद्धि के साथ किसी भी दशक के सुधार को दिखाने में नाकाम रहा है।
वहीं, दूसरा सर्वे ये है कि महिला रोजगार भी प्रभावित हुआ है। 2005-06 और 2015-16 के बीच, वेतन पर काम करने वाली महिलाओं का अनुपात 36 प्रतिशत से घटकर 24 प्रतिशत हो गया है। यह स्पष्ट रूप से बताता है कि भारत इस मामले में कितना धीमा हो गया है। इसके लिए मुख्य कारण जो बताए गए है उसमें से एक यह है कि अवैतनिक कार्य का अधिक से अधिक बोझ महिलाओं पर आता है, जिसमें परिवार का देखभाल भी शामिल है।