आम आदमी के मुद्दों को लेकर बनी आम आदमी पार्टी के अंदर घमासान मचा हुआ है। पार्टी की नींव रखने वाले नेता तक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं। पार्टी से अलग होने वाले लगभग सारे नेता पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगा रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल किसी की नहीं सुनते। आरोप तो यहां तक भी लगा कि वह अपनी पार्टी सदस्यों को भाजपा के नेताओं का नाम लेकर झूठे फोन करवाते हैं। गाली गलौच भी पार्टी के भीतर करते हैं। बाकी नेता भी एक दूसरे पर भ्रष्ट होने का आरोप लगा रहे हैं। यानी भ्रष्टाचार खत्म करने के मुद्दे पर जीत कर आने वाली पार्टी के मुखिया और बाकी नेताओं पर ही भ्रष्ट होने के आरोप लग रहे हैं। पार्टी की यह हालत देखकर प्रचलित राजनीतिक कहावत याद आ रही है कि सत्ता हमेशा भ्रष्ट करती है। तो क्या आम आदमी पार्टी के भीतर ही भ्रष्टाचार शुरू फैल गया है? यह बेहद अफसोस जनक है। उधर दिल्ली की जनता वादों के पूरा होने का इंतजार कर रही है। पर किससे सवाल पूछे। पार्टी तो अदरूनी कलह से जूझ रही है।
आम आदमी पार्टी की बदहाली इसलिए भी ज्यादा खल रही है क्योंकि यह पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए एक आंदोलन से निकली है। इसके संयोजक अरविंद केजरीवाल मोहल्ला सभा करके लोकतंत्र को सही मायने में लाने की बात करते हैं। इन्होंने कहा था कि पार्टी के भीतर हरेक की बात सुनी जाएगी। फिर एक साथ इतने नेता क्यों खफा हो गए? उन पर तानाशाही का आरोप क्यों लग रहा है? पार्टी के नेता एक दूसरे पर कीचड़ क्यों उछाल रहे हैं? इन सब सवालों का जवाब उन्हें लोकतांत्रिक तरीके से देना ही होगा। कुछ भी हो अरविंद केजरीवाल इस पार्टी के मुखिया हैं। इसलिए इस पार्टी का जो भी हाल होगा उससे उनकी नेतृत्व क्षमता का आंकलन होगा ही होगा।
आम आदमी पार्टी के अंदर कलह पर उठते सवाल
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