ऐसा कोई दिन नहीं बीतता जब देश के हर कोने से महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की खबरें न आती हों। इस बारे में कहा जाता है कि महिलाएं अपनी पोशाक, चाल– ढाल, मोबाइल आदि से पुरुषों को उकसाती हैं जिससे पुरुष बलात्कार करते हैं। लेकिन यहीं पर इस तर्क को बच्चियों के सम्बन्ध में कैसे लागू करेंगे लोग!
हमारे पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को न्याय मिलना कठिन है, लेकिन क्या हम कानून व्यवस्था से यह भी कोई उम्मीद नहीं लगा सकते!
हाल ही में कोर्ट ने महिलाओं के खिलाफ कई आदेश जारी किए, जिनको देखते हुए लगता है कि महिलाएं कितनी भी कोशिश करें आगे बढ़ने और बदलाव लाने की लेकिन यह पुरुषवादी समाज उन्हें हर कदम पर पीछे ढकेलने में लगा रहता है।
फिर चाहे वो गाँव स्तरीय जाति पंचायत हो या सुप्रीम कोर्ट हो, हर संस्था महिलाओं को लेकर दकियानूसी सोच रखती है।
आश्चर्य की बात है कि विश्व भर मे अपनी संस्कृति और नारीशक्ति की बात करने वाले भारत की आधी आबादी जरूरी सुविधाओं से कोसों दूर है। जहां देश मे तकनीक ने आसमान छू लिया है वहाँ मात्र 28 प्रतिशत महिलाएं ही फोन का इस्तेमाल करती हैं जबकि ग्राहक के रूप मे यदि देखा जाए तो सबसे ज्यादा सेवायें महिलाओं के नाम से जारी की जाती है। दरअसल, पुरुषवादी समाज की सोच है कि यदि महिलाओं को फोन दिया तो वह बिगड़ सकती हैं।
यही नहीं, महिलाओं के हकों की बात करने पर अक्सर परंपरा की दुहाई देकर उन्हें संपत्ति के बंटवारे में हिस्सा नहीं दिया जाता। कई महिलाएं यही सोच कर अपना हक छोड़ देती हैं कि कहीं उनका परिवार उनसे मुंह न मोड़ ले।
अपने देश मे महिलाओं की गिरती स्थिति को देख कर लगता है कि यही सही समय है जब देश की आधी आबादी को एक जुट हो कर अपने अधिकारों की लड़ाई लड़नी चाहिए।
आधी आबादी का दर्द कौन समझेगा?
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