जिला चित्रकूट। यहां टी.बी. के मरीज़ों की स्थिति बहुत गंभीर है। सरकार द्वारा चलाए जाने वाले डाॅट्स केन्द्रों में दवाई तो खिलाई जाती पर अधिकतर मरीज़ों को आराम नहीं मिलता।
ब्लाक पहाड़ी, गांव बक्टाबुज़ुर्ग। यहां के कोला ने बताया कि दस साल से टी.बी. की बीमारी है। पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में इलाज कराया लेकिन कोई आराम नहीं है। इस कारण से नए गांव छावनी में इलाज करा रहे हैं।
ब्लाक मानिकपुर, गांव खिचरी, पुरवा उमरी में सोहन लाल को बीस साल से टी.बी. है। इसका इलाज सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इसलिए अब वे प्राइवेट डाक्टर से इलाज करा रहे हैं।
ब्लाक मऊ, गांव मोहनी। पांच साल से टी.बी. से परेशान अमित बताते हैं कि डाॅट्स केन्द्र बस नाम के लिए बने हैं। दवाई तो खिलाई जाती है पर कोई असर नहीं है। प्राइवेट इलाज का खर्चा यह नहीं उठा सकते इसलिए मजबूरी में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में ही इलाज करा रहे हैं।
जिला चित्रकूट, ब्लाक कर्वी, पुरानी अस्पताल। क्षयरोग अधिकारी रत्नाकर सिंह का कहना है कि जिले में कुल दो सौ उन्तीस डाॅटस सेंटर हैं। जनवरी 2013 से दिसंबर 2013 तक कुल बारह सौ चैहत्तर टी.बी. के मरीज़ थे। टी.बी. का इलाज छह से आठ महीने और ज़्यादा गंभीर बीमारी जैसे एम.डी.आर. (जिसमें मरीज़ के फेफड़े गल जाते हैं और काम करना बंद कर देते हैं) उसका चैबिस से सत्ताइस महीने इलाज चलता है। एम.डी.आर. रोगी सौ में से पचास ही बच पाते हैं। ज़रूरी है कि लोग समय से दवा खाएं और इलाज जारी रखें।