सहेली, मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में मनकी गांव की डेढ़ वर्षीय लड़की सहेली, स्थानीय आंगनवाड़ी में पंजीकृत बच्चों में से नहीं है.
एक स्थानीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, शकुंतला यादव से जब पूछा गया कि कितने कुपोषित बच्चों का केन्द्र में रजिस्ट्रेशन हुआ है, तब वह तपाक से कहती है “दो”.
शकुंतला की प्रतिक्रिया के बाद, स्वयंसेवकों में गांव में लगभग 40 बच्चों पर जाँच की और पाया कि उनमें से आठ बच्चे “मापदंडों के अनुसार” कुपोषित हैं।
सहेली, जो लगभग चार किलोग्राम वजन की थी उसे तुरंत पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में भर्ती कराया गया। जांच के बाद पता लगा कि वह तपेदिक से भी पीड़ित है। केंद्र में उपचार के 15 दिनों के बाद उसका वजन तीन किलो तक बढ़ा देखा गया।
यह एक मामला नहीं, जिसमें लापरवाही दिखाई गयी है बल्कि पन्ना और छतरपुर जैसे जिलों के कम से कम 20 आंगनबाड़ी केंद्रों का दौरा करने पर हालात और भी बदतर दिखाई दिए. पन्ना के एक गांव मनौर के एक भी बच्चे का कुपोषित मानकों के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है. छत्तरपुर के सिंगरो गांव की आंगनवाडी की कार्यकर्ता यशोदा कहती है कि पिछले माह दो बच्चो का रजिस्ट्रेशन हुआ था.
पृथ्वी समाजिक संस्था ने कई आंगनवाड़ी से डाटा एकत्र कर बच्चों की जांच करना शुरू की. संस्था से जुड़े प्रदीप कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि तीन महीनें पहले उन्होंने जनकपुर ग्राम पंचायत, गांधीग्राम में गांव की महिलाओं के साथ मीटिंग रखी थी. इसी समय रुबीना नामक 6 साल की बच्ची अपनी दादीमाँ के साथ वहां आई थी. इसके पूरे शरीर पर घाव थे. इसके इलाज के लिए जब उसे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया तब पता लगा कि वह तपेदिक और कुपोषण से पीड़ित है और उसका नाम कुपोषित बच्चों की लिस्ट में कहीं नहीं है. इस खबर को जब स्थानीय अख़बार में छापा गया तो प्रदीप को धमकियां मिलने लगी कि वह गांव छोड़ कर चले जाएं.
इसी तरह का अनुभव संस्था की कार्यकर्ता स्नेहलता भी साँझा करते हुए बताती हैं कि गांव में मात्र दो बच्चों का कुपोषित रजिस्ट्रेशन लिस्ट में नाम देखने के बाद जब मानकों के आधार पर ‘गंभीर तीव्र कुपोषित’ टेस्ट के अंतर्गत 45 बच्चों में से 11 बच्चे कुपोषित पाए गये.
छत्तरपुर में कवार और भुसौर जैसे गांवों में एक भी बच्चे का आंगनवाड़ियों में ‘कुपोषण के शिकार’ के रूप में रजिस्ट्रेशन नहीं किया गया है. इन्ही कारणों से मध्य प्रदेश कुपोषण के मामले में सबसे आगे माना जाता है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, पन्ना में 43.1 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जिनका कुपोषण के कारण विकास रुक चुका है, 24.7 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो अति-कुपोषित हैं और 40.3 प्रतिशत बच्चे कम वजन वाले पाए गये. यही हाल छत्तरपुर का है.
सहेली की माँ कुसुम बताती है कि उसकी बेटी को सिर्फ एक वक़्त का खाना ही मिलता है. आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी यही कहते हैं कि खाना तीनों वक़्त का बनाया जाता है. आंगनवाड़ी सदस्यों ने कुपोषित बच्चों की संख्या इसलिए छुपायी ताकि उन पर अधिक बोझ न आ सके! अब सवाल यह उठता है कि यदि आंगनवाड़ी बच्चों को तीन टाइम का खाना खिलाने का दावा करती है तो बच्चे कुपोषित कैसे हैं?
इस बीच यह भी बात देखने को मिली कि अधिकतर आंगनवाड़ी की कार्यकर्ता सशक्त वर्ग से आई हुई है जबकि वहां आने वाले श्रमिकों के होते हैं. कई गांव वालों ने शिकायत भी की है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता कई-कई दिनों, महीनों तक आंगनवाड़ी से गायब रहती हैं. ऐसे में बच्चों का कुपोषित होना और उनका आंगनवाड़ी से सहायता प्राप्त करना योजना का असफल होना दर्शाता है.
साभार : कुंदन पांडेय / डाउन टू एअर्थ पत्रिका: http://www.downtoearth.org.in/news/the-curious-case-of-missing-children-at-anganwadis-54560