राज्यों में आंगनवाड़ी केन्द्रों की भारी कमी ने ये जरूरी कर दिया है कि निर्माण कार्य को बढ़ाया जाए ताकि 2019 तक चार लाख आंगनवाड़ी केन्द्रों की बच्चों के हिसाब से अच्छी इमारतें बन सकें। हाल ही में महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा दिए गए प्रस्ताव के अनुसार अगले चार साल के लिए निर्माण दिशानिर्देशों में बदलाव किया जा सकता है। हर साल जहां पचास हजार आंगनवाड़ी केंद्र बनाएं जाते हैं, वहीं यह संख्या बढ़ा कर एक लाख करने की बात हो रही है। इसके अलावा इन आंगनवाड़ी केन्द्रों में पचास प्रतिशत समय बाल कल्याण कार्यक्रमों पर और बाकी औरतों के विकास पर दिया जाएगा। 31 दिसंबर 2014 को अनुमोदित आंगनवाडि़यों की लक्षित संख्या चैदह लाख थी जिसमें से 13.42 लाख काम कर रहे थे।
समन्वित बाल विकास योजना पर ‘कैग’ के कार्य निष्पादन ऑडिट के अनुसार स्थान का निश्चित न होना, जगह को लेकर झगड़े, टेंडर के निश्चित होने में देरी, काम के धीरे चलने, ये मुख्य कारण हैं।
मौजूद आंगनवाड़ी केन्द्रों में से 32.56 प्रतिशत किराए की इमारतों में चलते हैं। जबकि जिनमें से 18.81 प्रतिशत की तो पक्की इमारतें भी नहीं हैं। दिल्ली, जम्मू कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश और बिहार के 50 प्रतिशत आंगनवाड़ी केन्द्रों की अपनी इमारत भी नहीं है। इन समस्याओं को दूर करने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय ने कहा है कि नए केन्द्रों कि संरचना होनी चाहिए, जिसमें बच्चों के बैठने के लिए कमरा, रसोईघर और बच्चों के खेलने के लिए कम से कम छह सौ स्क्वेयर फीट जगह होनी चाहिए। मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार बच्चों के लिए शौचालय और पीने का पानी आंगनवाड़ी केंद्र के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। इनकी अनुपस्थिति में बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
महिला और बाल विकास मंत्रालय की ग्रांट्स रिपोर्ट (2015-16) के अनुसार कुछ राज्यों जैसे नागालैंड, उत्तराखंड और केंद्रशासित प्रदेशों जैसे चंडीगढ़, दिल्ली, दमन और दिऊ व लक्षद्वीप को छोड़कर शौचालय सेवाओं के मामले में राज्यों को अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अभी काफी दूरी तय करनी है। देश में मौजूद 13.42 लाख आंगनवाड़ी केन्द्रों में से सिर्फ 6.48 लाख आंगनवाड़ी केन्द्रों में ही शौचालय हैं। इससे भी कम आंगनवाड़ी केन्द्रों में पीने के पानी की व्यवस्था है।
आंगनवाडि़यों की स्थितिः राज्यों का प्रदर्शन
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