भारत में तीस करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं। फरवरी 2015 में आई संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में यह बात सामने आई। जून में संयुक्त राष्ट्र ने ही एक और रिपोर्ट जारी की, इसमें दुनिया के एक सौ उनतिस देशों में भुखमरी से जूझ रहे लोगों के आंकड़े दर्ज हैं। भारत इसमें पहले नंबर पर है। एक सौ पच्चीस करोड़ आबादी वाले हमारे देश में साढ़े उन्नीस करोड़ लोग भुखमरी से जूझ रहे हैं। यहां समझना चाहिए कि भुखमरी है क्या?
शरीर के लिए जरूर ऊर्जा वाले भोजन के न मिल पाने से भुखमरी की शुरुआत होती है। जुलाई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि सभी राज्य खाद्य सुरक्षा कानून लागू करें। इसमें पूरे देश के सड़सठ प्रतिशत लोग शामिल थे। इसे अंत्योदय योजना नाम दिया गया था। लाभ पाने वाले लोगों को पैंतिस किलो अनाज सस्ते दामों में मिलना था। लेकिन यह कानून अब तक देश में केवल ग्यारह राज्यों में ही लागू किया गया है, वह भी आधा अधूरा। पंजाब, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक समेत दूसरे राज्यों में यह लागू तो हुआ मगर लाभ पाने वाले लोगों की सूची आज तक पूरी नहीं हो पाई।
कुपोषण और भुखमरी की चिंता करने की जगह हमारे नेता शाकाहारी खाने की सलाह दे रहे हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने आंगनबाड़ी में मिलने वाले पोषाहार में अंडे शामिल करने से मना कर दिया। दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने पहले ही गाय के मांस पर रोक लगा दी है। इसके पीछे कारण धार्मिक है। जबकि कई समुदायों के लिए गाय का मांस एक बेहतर और सस्ता पोषाहार था। कागजी योजनाओं और धार्मिक मान्यताओं के बीच कैसे लड़ेंगे हम भुखमरी और कुपोषण से?