पूरे देष में चुनाव का मौसम है। नेता और सभी पार्टियां प्रचार प्रसार में जुटी हैं। मीडिया भी घूमघूमकर कुछ खास खोज रही है। ऐसा पहले भी होता रहा है। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। लेकिन इन सब के बीच सबसे खराब जो घट रहा है वह यह कि नेता, उनके समर्थक विपक्षियों की व्यक्तिगत जिंदगी पर कीचड़ उछाल रहे हैं। और मीडिया इन सबको मिर्च मसाला लगाकर घंटों चला रहा है।
हाल ही में जषोदाबेन को लेकर नरेंद्र मोदी को घेरने की कोषिष की गई। कांग्रेस और दूसरे दलों ने पहले कहा कि उन्होंने यह बात क्यों छिपाई? फिर कहा कि जो अपने घर की औरतों की इज्जत नहीं करता वह देष की महिलाओं को क्या सम्मान देगा? मीडिया जनता के असल मुद्दों को छोड़कर इनका नाटकीय प्रसारण करने में जुटा है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के मामले में भी यही हो रहा है। जब से यह पता चला है कि उनका संबंध एक विवाहित महिला पत्रकार से हैं चैबीसों घंटे बस यही टी.वी. पर चल रहा है। हद तो यह है कि दोनों के बेहद व्यक्तिगत फोटो जारी किए जा रहे हैं।
लोगों की व्यक्तिगत जिंदगी में झांकने से ज़्यादा और कई ज़रूरी मुद्दे हैं। जैसे कई गांवों में आज तक बिजली नहीं पहुंची, सड़कें नहीं बनीं, समाज और योजनाओं के स्तर पर दलितों के साथ भेदभाव हो रहा है। क्या मीडिया और नेताओं का ध्यान इन खबरों पर केंद्रित नहीं होना चाहिए बजाए उम्मीदवारों के व्यक्तिगत मसलों के? वैसे भी किसी की व्यक्तिगत जिंदगी से यह तय नहीं किया जाना चाहिए कि वह अच्छा नेता या अच्छा प्रषासनिक अधिकारी बनेगा या नहीं। मीडिया और नेताओं दोनों को इस तरह की राय बनाने से बचना चाहिए।
असल मुद्दों से दूर मीडिया और नेता
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