असम में नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) के “पूर्ण मसौदे” को जारी किया गया जिसमें शामिल जानकारी के अनुसार असम ने सबसे कम आधार कार्ड धारक पाए गये है। ये संख्या करीब 9% है जो आबादी ने भारत की विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के साथ नामांकन करने की प्रक्रिया में राष्ट्रीय औसत की तुलना में सबसे कम है।
यूआईडीएआई वेबसाइट के अनुसार, राज्य में 3.46 करोड़ की अनुमानित आबादी है, जबकि जून–अंत तक केवल 31.36 लाख लोगों (9.1 प्रतिशत) को आधार संख्या सौंपी गई है। 30 जुलाई तक इस नामांकन की संख्या 33.0 9 लाख तक रही है।
दरअसल, सरकार ने पहले एनआरसी को अपडेट करने के बाद इसके रिकॉर्ड को आधार के डाटाबेस से जोड़ने के बाद असम में औपचारिक रूप से आधार कार्ड शुरू करने का फैसला किया था। बीते साल गोलाघाट, नगांव और शोणितपुर जिलों में परीक्षण के तौर पर आधार कार्ड बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। लेकिन उसे दिसंबर, 2016 में रोक दिया गया।
पहले राज्य सरकार को डर था कि कहीं आधार कार्ड हासिल करने वाले घुसपैठिए नागरिकता का दावा ना करने लगें। लेकिन केंद्र ने साफ कर दिया कि आधार महज आवास प्रमाणपत्र है, नागरिकता प्रमाणपत्र नहीं। उसके बाद असम सरकार ने इस प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने का फैसला किया। अब अगले साल तक पूरे राज्य को आधार के दायरे में शामिल करने के लिए सरकार ने एक उच्च–स्तरीय समिति का गठन किया है।
इसके लिए पूरे राज्य में साढ़े सात हजार स्थायी और ढाई हजार मोबाइल केंद्र स्थापित किए जाएंगे। इस बीच, केंद्र ने निजी एजेंसियों को आधार कार्ड बनाने की कवायद से दूर रखने का फैसला किया है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि आधार की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। उन पर 17 जनवरी से सुनवाई होनी है।