मुंबई में हाल ही में डांस बार पर से आठ साल बाद रोक हटा दी गई। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने कई विवाद छेड़ दिए हैं। एक तरफ महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि डांस बार समाज में गैर कानूनी कामों और खराब लोगों का अड्डा था इसलिए इन्हें बंद करना ज़रूरी हो गया।
असल में पिछले आठ सालों में मुंबई में गैर कानूनी कामों या जुर्मों में कोई कमी नहीं नज़र आई। तो फिर जुर्म का डांस बार से क्या लेना देना? बात अश्लीलता की है। महिलाओं के उस काम को करने पर रोक है जिसे महाराष्ट्र सरकार गंदा या कलंकित समझती है। नाचने में क्या बुराई है? बड़े बड़े फिल्मी सितारे नाचते हैं। क्या बुराई इस बात की है कि गरीब वर्ग की कम पढ़ी लिखी महिलाएं नाच रही हैं? क्या ये महिलाएं अपने फैसले खुद नहीं ले सकती?
शरीर के धंदे से सबको घिन है। क्या हर व्यक्ति रोज़ी रोटी के लिए अपना शरीर और दिमाग इस्तेमाल नहीं करता? तो सरकार कैसे तय कर सकती है कि कौन कौनसा अंग कैसे इस्तेमाल करेगा? कानून तो जनता की सुरक्षा के लिए होने चाहिए, न कि उनकी रोज़ी रोटी छीनने के लिए।
महाराष्ट्र सरकार ने इन महिलाओं को और नौकरियां दिलाने के लिए कुछ नहीं किया। क्योंकि खुद सरकार इस काम को अश्लील कह रही है, इन महिलाओं को दूसरे काम भी मिलने मुश्किल हो गए। डांस बार में नाचने वाली महिलाओं को कोई काम नहीं देना चाहता था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से सही को बढ़ावा दिया है। इस फैसले से न सिर्फ लाखों और नौकरियां पैदा होंगी बल्कि बेबुनियाद भेदभाव पर भी रोक लगेगी। उम्मीद ये है कि महाराष्ट्र की पाखंडी सरकार अपने राज्य में इस फैसले को स्वीकारे।
अश्लीलता की कोई परिभाषा नहीं
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