लेखक और पत्रकार विंस बीसर के अनुसार, अवैध बालू खनन के कारण अब बालू दुर्लभ संसाधनों में गिना जा रहा है. असल में बालू की कमी का मुख्य कारण इसका अवैध व्यापार होना है, जहाँ भारी मात्रा में नदियों से बालू चुराया जाता है.
बालू की वैश्विक मांग तेज़ी से बढ़ रही है. इसका ज़्यादातर इस्तेमाल शहरों में हो रहा है. बीसर के अनुसार, दुनिया में शहरों की संख्या बहुत ज़्यादा हो गयी है. 1950 से अभी तक दुनिया में शहरी आबादी 74.6 करोड़ से 390 करोड़ हो चुकी है. इस बढ़ती आबादी की ज़रूरतें जैसे- घर, स्कूल, अस्पताल, सड़क आदि पूरी करने के लिए भारी मात्रा में सीमेंट की ज़रुरत होती है जिसमें बालू मिलाया जाता है. बालू का उपयोग सीमेंट और शीशा दोनों बनाने में होता है.
बालू की बढ़ती मांग की वजह से दुनिया भर में नदियों के किनारों और समुद्र तटों को नष्ट किया जा रहा है. बीसर कहते हैं कि बालू की चोरी की वजह से छोटे द्वीप नष्ट हो रहे हैं. इंडोनेशिया के दो दर्जन द्वीप इसी कारण गायब हो चुके हैं.
ये समस्या भारत में भी देखने को मिलती है. भारत में अवैध बालू खनन एक आकर्षक व्यापार है. उत्तर प्रदेश की मुख्य नदियों जैसे गंगा, यमुना, घाघरा, चम्बल, गोमती, केन और बेतवा में बालू माफ़िया अवैध खनन करते हैं. राजनैतिक समर्थन होने के कारण इस अवैध खनन को रोकना भी मुश्किल हो गया है.
बुंदेलखंड में इस समस्या का हल खोजना और भी अधिक कठिन है. बाँदा ज़िले में केन नदी और जालौन ज़िले में बेतवा नदी में भारी मात्रा में अवैध खनन हो रहा है. जून 2012 में जब जालौन के एस.पी. नवनीत राना ने अवैध खनन के ख़िलाफ़ रोक लगाने की कोशिश की तो उनका तबादला करवा दिया गया था. उत्तर प्रदेश के राज्य सिंचाई विभाग के अनुसार, अब तक बालू माफिया ने 24 इंजीनियरों को मार डाला है. यहाँ नेताओं का इतना दबदबा है कि रोक तो दूर, कारवाही होनी भी बहुत मुश्किल है.
साभार : डाउन टू अर्थ ब्योरों