लखनऊ की गंगा-जमनी तहज़ीब और इतिहास की खासियत मनाई गई पांच दिन के जलसे में
लखनऊ। 2006 से हर साल लखनऊ में फरवरी के महीने में ‘सनतकदा महोत्सव’ का आयोजन किया जाता है। हर साल लखनऊ और अवध के किसी खास पहलू को ये महोत्सव बखूबी दिखाता है। इस बार 6 से 10 फरवरी तक इस महोत्सव मंे अवध में बनी फिल्मों को दिखाया गया। साथ ही पूूरे शहर से लोग यहां खरीदारी करने भी पहुंचे। देश के अलग-अलग राज्यों से शिल्पकार अपनी कला और काम को लेकर यहां पहुंचे थे।
पांच दिनों के लिए लखनऊ में बारादरी में चहलकदमी, जगमगाती बत्तियों और पुरानी फिल्मों की धुनों से एक अलग ही नज़ारा बना हुआ था। हर दिन शाम को जाने-माने कलाकारों का संगीत और नाट्य कार्यक्रम भी हुआ जिसमें 8 फरवरी की शाम ‘मेरा घाघरा’ और ‘नमक इश्क का’ की गायिका रेखा भारद्वाज ने लखनऊ को अपने संगीत से भर दिया।
राजस्थान के चित्तौड़ जिले के वस्सी गांव की राम कन्या ने विलुप्त हो रहे कावर को बनाने की कला को जीवित रखा है। इसमें लकड़ी पर पेन्ट से चित्र बना कर, इन गुडि़याओं को कोई कहानी बताने के लिए इस्तेमाल करते हैं। रामकन्या के पूर्वज इन्हें बनाने का काम किया करते थे। आज वे जगह-जगह अपनी इस कला को पहुंचा रही हैं और अपने गांव में और लोगों को सिखा रही हैं।
लखनऊ और अवध का ऐसा कोई पकवान नहीं होगा जो इस महोत्सव में नहीं था। बिरयानी, कोरमा और कबाब से लेकर मशहूर चाट, केसरिया दूध और शाही टुकड़ा – आने वालों ने जमकर मज़ा उठाया।
छत्तीसगढ़, राजस्थान, आंध्र प्रदेश – सभी राज्यों से लोग आए हुए थे। महोत्सव के दौरान कई पुरानी फिल्में देखने को मिलीं जिनकी शूटिंग लखनऊ और आसपास हुई थी। पांच दिन तक शहर में अलग ही माहौल रहा।