आजादी के सत्तर साल बाद भी का मेहरारू आजाद बाटिन। आजाद होइके भी आजाद नाय होय पाइन चाहे ऊ घर परिवार से या फिर डर के कारण।
कंचन गुप्ता बताईन की हम अपने घर से तो पूरी तरह से आजाद हई। लकिन जहा तक आजादी कै बात बाय मेहरारू नाय आजाद बाटिन। क़ानूनी रूप से तव हम आजाद होई चुकी हई लकिन हकीकत मा हम स्वतंत्र नाय हई। सौ प्रतिशत मा पचीस प्रतिशत मेहरारू आजाद हई।
स्नेह लता कै कहब बाय कि हम स्वतंत्र तौ हई लकिन सेफ़ नाय हई। रात विरात अकेल निकरै मा डर लाग रहाथै। कहूं रात होइगै तौ कैसे घरे जाब। कभो परिवार से आजाद नाय हई। उनका हमेशा हर तरफ से औरत ही माना गए आजादी मिलके भी आजादी नाय मिली। सुरेखा कै कहब बाय कि केहू आगे पीछे नाय बाय तौ डर लाग रहाथै। अकेल कहू नाय आय जाय सकित।
कानून ने हमें आज़ादी दी है, लेकिन मूल रूप से हम आज़ाद नहीं हैं
अम्बेडकरनगर की औरतों के आज़ादी पर विचार