बनारस। हर साल सावन आता है। हर सावन में कांवडि़ए भी आते हैं। सड़कों में जाम, दुर्घटनाएं। कांवडि़यों का हुल्लड़। डी.जे. का शोर। कांवडि़यों की बेलगाम गाडि़यां, दोपहिया या फिर चार पहिया। सावन आते ही बनारस की ऐसी ही छवि बनती है। लेकिन इस बार बनारस में कांवडि़ए तो आए, मगर न डी.जे. बजा न हल्ला हुआ। न फुटपाथ पर सोते अस्त-व्यस्त कांवडि़ए दिखे। चार दिन बाद भी सब शांतिपूर्ण ढंग से चल रहा था। दरअसल इस बार बनारस के पूर्व डी.एम. प्रांजल यादव ने पहले से ही कई आदेश प्रशासन को जारी कर दिए थे।
पहली बार डी.जे. न बजाने के साथ ही डी.जे. चलाने वाले लोगों से भी संपर्क कर उनसे कांवडि़यों को डी.जे. किराए में देने से सख्त मना किया गया था। सड़कों में लकड़ी के ब्रेकर लगाकर पूरी सड़क को कई गलियों में बांटा गया था। पैदल कांवडि़यों और स्थानीए लोगों की अपनी अपनी गलियां हैं। कांवडि़ए भीड़ ना लगाएं इसके लिए बनारस के कैंट रेलवे स्टेशन और दशाष्मेध घाट पर खास तौर पर कैंप लगे हैं।
बनाए गए बैरियर
बनारस में पहली बार लकड़ी के ब्रेकर लगाए गए। यह ब्रेकर सड़क को कई गलियों में बांटने का काम भी कर रहे हैं। कांवडि़ए इस बार पूरी सड़क घेरकर नहीं बल्कि इन गलियों में ही चल रहे हैं। दशाष्मेध घाट के रास्ते में जाने वाली सड़क के किनारे पूजा का सामान बेचने वाले पप्पू ने बताया कि इस तरह के ब्रेकर के कारण जाम नहीं लग रहा है। पहले कांवडि़ए हमारी दुकान को घेरकर खड़े हो जाते थे, मगर अब गलियां बनने के कारण अब वही लोग दुकान आ रहे हैं जिन्हें वाकई में खरीददारी करनी है।