जिला वाराणसी, नगर क्षेत्र दशाश्वमेध घाट। एक ही घर के चार बच्चन कूड़ बीन के आपन पेट चलावत हयन।
कूड़ा बीने वाले चारो बच्चन के कहब हव कि हमार माई दू महीना पहिले मर गइलिन। ओकरे एक महीना के बाद हमार बाउ भी मर गइलन। अब हमने के केहुं सहारा नाहीं हव। हमने के चाचा चाची भी हईन लेकिन उ लोग हमने के मार के भगा देहले हयन।
बच्चन बतावलन कि घरे से निकलले के बाद हमने आपन एही घाट पर कूड़ बीनीलर आउर बेचीला। रोज लगभग पचास से सत्तर रूपिया के कमाई हो जाला। एही पइसा से हमने चारो भाई होटल में जाके खाईला। आउर कहीं सड़क पर जाके रात गुजारीला। जब कभी हमने पत्रअपने घरे जाल जाई त घरे वाला लोग मार के भगा देलन।
इहां के दुकानदार के भी कहब हव कि इ बात सच हव कि इ बच्चन के कउनों सहारा नाहीं हव। इ बच्चन अपने से आपन पेट चलावत हयन। ना तो माई बाउ के साथ हव। आउर ना तो घरही वालन साथ देत हयन।
अपने से आपन पेट चलावत बच्चन
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