भारत सरकार ने 15 अक्टूबर को महिला किसान दिवस तो घोषित कर दिया। पर खुद ही इस दिवस पर किसी भी प्रकार के सरकारी कार्यक्रम को आयोजित करवाना भूल गए। हद तो ये हो गई, जब सरकारी विज्ञापनों से अखबारों को भर देने वाली सरकार ने एक विज्ञापन तक नहीं छापा।
भारत एक कृषि प्रधान देश है, पर फिर भी किसानों के साथ होने वाली अनदेखी किसी से छुपी नहीं है। इसपर जब बात महिला किसान की करें तो स्थिति बुरी से भी बुरी नजर आती है। देश में 60 प्रतिशत से 80 प्रतिशत महिलाएं खेती के काम में लगी हैं। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जमीन का मलिकाना हक सिर्फ 13 प्रतिशत के पास है।
खेती में बुआई, निराई, कटाई, मड़ाई जैसे काम करने वाली महिला किसानों की संख्या को देखें तो 11 करोड़ 87 लाख किसानों की कुल आबादी में से 30.3 महिला किसान हैं। महिला किसानों को पुरुष किसान की तरह महत्व नहीं मिलता। इसका मुख्य कारण महिलाओं का अकुशलतापूर्ण कार्य में लगना है। जबकि पुरुष किसान हल जोतना, बीज की खरीद और मण्डी में लेनदेन जैसे काम करते हैं, जो आमतौर पर महिलाएं नहीं करती। पुरुष किसान के द्वारा तकनीकी से संबंधित काम जैसे खेत में क्या नई तकनीकी और कीटनाशक की पूरी जानकारी उनके पास होती है। हालांकि बुंदेलखंड मेंमहिला किसान हर प्रकार के रूप धारण करती हैं, और ये कहा नहीं जा सकता की ऐसा कोई काम नहीं है, जो वे नहीं करती, चाहे वो कौशल से जुड़े हो, याफिर बिक्री और व्यापार से।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार महिला का श्रम पुरुषों की तुलना में दुगुना है। इसके बावजूद भी महिलाओं को किसान का दर्जा देने में आनाकानी हो रही है। श्रम की बात करें तो महिलाएं घर के काम के साथ खेतों की जिम्मेदारी संभालती हैं। महिला किसान का ये श्रम यहीं खत्म नहीं होता हैं, बल्कि वे पशु पालन का काम भी करती हैं। कितनी मेहनत के बाद वे घरेलू हिंसा को सहती हुई प्रकृति आपदा का दंष भी झेलती हैं।
15 अक्टूबर को जब आप आराम कर रहे थे, उस दिन चुपके से महिला किसान दिवस बीत रहा था
बुंदेलखंड की सूखी जमीन पर खेती करने वाली महिलाओं की स्थिति भी बुरी हैं। बांदा के बड़ोखर्द की फूला एक महिला किसान हैं। फूला अपने खेती के काम पर यहीं कहना चाहती हैं कि वे फसल के लिए मिट्टी तैयार करने से लेकर फसल वाहनों में भरने तक के काम करती हैं, लेकिन ये सब करने के बाद भी फसल का पूरा पैसा पति के ही खाते में जाता है। “हम इतनी मेहनत के बाद भी पैसे के लिए पति की तरफ ही देखते हैं।” वहीं झांसी की रामवती कहती हैं,“घर का काम करते हैं, फिर जानवारों से लेकर खेतों तक में दिन रात मेहनत करते हैं। इसके बावजूद भी पति का दवाब कम करने के लिए दारु पी ले तो उसकी मार भी हम ही खाते हैं।”
खेती की सफलता महिलाओं के कंधों पर होने के बाद भी जब किसानों की बात होती हैं, तो पूरा ध्यान पुरुष ही ले जाते हैं।
महिलाओं को कब उनकी मेहनत का फल मिलेगा इस पर तो विवादऔर बुलंद होना चाहिए,लेकिन फिलहाल महिला किसान दिवस घोषित करने का उद्देश्य क्या है,अभी तो ये भी पूरा होता नहीं दिख रहा है।