जिला बांदा। बांदा जिले में बीस हज़ार से ज़्यादा इन्द्रा आवास बनने का लक्ष्य था लेकिन सिर्फ तीन हज़ार के करीब बने हैं। बांदा के लिए साल 2013 से 2014 तक बीस हज़ार आवास के लिए बजट भी पास हुआ था पर साल बीत जाने के बाद भी सत्रह हज़ार आवास नहीं बने हैं।
ब्लाक महुआ, गांव पचोखर की मइकी वाल्मीकि जाति की महिला हैं। 2011-12 में उन्हें इन्द्रा आवास मिला था पर दूसरी किश्त न मिलने के कारण आज तक अधूरा पड़ा है। इसके लिए नरैनी तहसील और प्रधान से कई बार कहा गया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इसी तरह सुनीता बताती हैं कि जनवरी 2014 में इन्द्रा आवास मिला था लेकिन दूसरी किश्त न मिलने के कारण आवास आज भी अधूरा है।
ब्लाक नरैनी के पथरा गांव की सावित्री, सोना, राजाबाई और राम बाई को जनवरी 2014 में इन्द्रा आवास दिए गए थे। लेंटर तक आवास बन गए लेकिन दूसरी किश्त ना मिलने के कारण सभी आवास अधूरे हैं।
सी.डी.ओ. प्रमोद शर्मा का कहना है कि दूसरी किश्त ना मिलना सरकार की लापरवाही है। इसके लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव बनाकर भेजा जा चुका है।
इन्दिरा आवास योजना के तहत गांव में बी.पी.एल. सूची में आने वाले परिवार, खासकर अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों की महिलाओं को लाभ मिलता है।,
योजना के तहत केंद्र सरकार बजट का तीन चैथाई हिस्सा देती है और बाकि का हिस्सा राज्य सरकार की ओर से आता है।
बांदा में अधूरे पड़े आवासों पर अब नया सवाल खड़ा हो गया है। चुनाव के बाद नई केंद्र सरकार का ध्यान इस समस्या पर कब पड़ेगा?