जिला वाराणसी में सरकार पढ़े बदे हर ग्राम पंचायत के हिसाब से स्कूल खोलले हव करोड़ो लाखो रूपिया खर्च करके कहीं बिना शिक्षा के एको बच्चा छूटे ना।
वाराणसी के स्कूल के हालत अइसन हव कि गावं के कुछ अइसन लोग हयन कि जेकरे पास पइसा उ प्राइवेट स्कूल में पढ़ावत हव। कुछ लोग के पास एतना पइसा नाहीं हव त सरकारी स्कूल के आसरे हयन। स्कूल में कहीं ठीक से शौचालय नाहीं हव अगर हव त खाली ताला लगल हव। खाली टीचर बदे खुलला।
कहीं स्कूल में हैण्डपम्प हव। त कहीं एकदम नाहीं हव। बच्चन के घर से बोतल लियावे के पड़त हव। हाजीपुर शौचालय के सोकता के पानी हैण्डपम्प से निकलत हव। कहीं बिना चहारदीवारी के स्कूल हव। कहीं स्कूल में पढ़ाई नाहीं होत हव त कहीं स्कूल में ठीक से खाना नाहीं मिलत हव। इ हाल देख के गावं के कुछ लोग अपने बच्चन के नाहीं पढ़ावत हयन। सरकारी स्कूल खाली खोले से मतलब रही। सरकार कभी जाँच नाहीं करवावत कि स्कूल के काम जउन अधिकारी के देहले हई उ आपन काम ठीक से करत हयन कि नाहीं। अगर अपने घर के हैण्डपम्प में बाल आई त अधिकारी लोग दूसर हैण्डपम्प गड़वा लेहियन लेकिन स्कूल में दू सौ बच्चन के समस्या प्रधान से लेके विधायक तक साग मूरई समझत हयन। सरकार के स्कूल के जांच हर महीना करवावे के चाही कि जब एतना पइसा खर्च करत हईत स्कूल के हालत का हव।
अधिकारी के नजर में स्कूल के समस्या कम नजर आवत हव
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