धरती को बौनों की नहीं
ऊंचे कद के इंसानों की जरुरत है।
इतने ऊंचे कि आसमान छू लें,
नये नक्षत्रों में प्रतिभा के बीज बो लें,
किन्तु इतने ऊंचे भी नहीं,
कि पांव तले दूब ही न जमे,
कोई कांटा न चुभे,
कोई कली न खिले।
न बसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊंचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना,
ग़ैरों को गले न लगा सकूं,
इतनी रुखाई कभी मत देना।
– अटल बिहारी वाजपेयी
लेख की शुरुआत अटल बिहारी की कविता की पंक्तियों से, क्योंकि वह जितने बड़े राजनेता, वक्ता थे, उतने ही बड़े कवि भी थे, उनकी कविता में एक कोमल कवि के मन की बात थी। अटल जी राजनीति व्यस्ता के बीच जब भी कविता सुनाने का मौका पाते तो अपनी कविता नहीं लिख पाने की मजबूरी जरुर बता देते। अपनी मजबूत भाषा में पकड़ के कारण श्रोताओं को कैसे अपने भाषण में बांधना हैं, वह ये बखूबी जानते थे। उनके भाषण हास्य, व्यंग्य, गंभीरता का मेल थे।
मई 1998 में पोखरण में पांच परमाणु बमों का परीक्षण अटल बिहारी की सरकार के दौरान हुआ। इस परीक्षण के बाद भारत परमाणु शक्ति से संपन देश तो हुआ। लेकिन अमेरिका सहित पश्चिमी देशों का दबाव भारत पर बढ़ा। देश को कुछ प्रतिबंधों से गुजरना पड़ा। जिसके बाद अटल जी ने इंडिया शाइनिंग के नारे से लोकसभा चुनाव तो लड़ा गया, लेकिन जीत कांग्रेस के हिस्से में गई।
25 दिसंबर 1924 में मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले में अटल बिहारी जन्मे थे। वकालत की पढ़ाई करके 1951 में भारतीय जनसंध के साथ सक्रिय राजनीति की शुरुआत की। 1980 में भारतीय जनसंध से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बने। तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने, और तीसरी बार 1999 से 2004 तक अपना पूरा प्रधानमंत्री का कार्यकाल पूरा किया। वह गुजरात दंगों के समय नरेन्द्र मोदी को राजधर्म याद दिलाने वाले बीजेपी में एक मात्र नेता थे। उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी को कहा था कि नागरिकों में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। वहीँ अटल आजीवन संघ के प्रचारक भी रहे। उनकी हिन्दुत्व विचार धारा नरम थी, वहीँ आडवानी उग्र हिन्दुत्व विचार धारा के लिए जाने जाते थे। आडवानी की रथ यात्रा से भी अटल को अलग ही रहा गया था। लेकिन इसका ये मतलब बिलकुल भी नहीं था कि उन्होंने विवादस्पद बयान नहीं दिए, गोवा में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में 12 अप्रैल को वाजपेयी ने जो भाषण दिया था। उन्होंने कहा, “मुसलमान जहाँ कहीं भी हैं, वे दूसरों के साथ सह अस्तित्व पसंद नहीं करते, वे दूसरों से मेलजोल नहीं चाहते, अपने विचारों को शांति से प्रचारित करने की जगह वे अपने धर्म का प्रसार आतंक और धमकियों के ज़रिए करते हैं।”
बुंदेलखंड के नेताओं ने अटल बिहारी की मृत्यु पर उन्हें याद करते हुए दुःख व्यक्त किया। वाराणसी के राजन प्रताप अटल जी की इस विदाई पर कहते हैं कि उनके जाने के बाद जो शून्य छोड़ गया है, वह कभी नहीं भर सकता है। वहीं वाराणसी के हरी शंकर कहते हैं कि ऐसा नेता अब भारतीय राजनीति में नहीं हैं, विरोधियों को सम्मान देना अटल जी के चरित्र की महानता थी। बांदा के प्रदीप सिंह कहते हैं कि देश को परमाणु बम देने वाले थे वह। चित्रकूट से भाजपा उपाध्यक्ष रंजना उपाध्याय कहती हैं कि पार्टी की नींव के साथी वाजपेयी के अथक प्रयासों के कारण ही आज पार्टी यहां तक आई है। अपने नेता के लिए लोगों के पास बहुत सी बातें है। लेकिन आज खबरों की सुर्खियों में छाया ये नेता कल अखबारों से तो गायाब हो जाएंगे, पर आज की राजनीति और उनकी पार्टी को उनका व्यक्तित्व राह दिखाने जैसा है।
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साभार: अलका मनराल