आपने जब मेरे शारीरिक ढाँचे पर टिप्पणी करी, तो आपने ये तो बिलकुल भी नहीं सोचा की ये बात करना उचित है या नहीं। मेरी बेटी ज्योति की ख़ूबसूरती से इसका जुड़ाव बनाना, कितना उचित है या नहीं, ये भी आपने बिलकुल नहीं सोचा।लेकिन इन घिनौनी टिप्पन्नियों के बाद, जो आपने लड़कियों को सलाह दी, उसने तो सारी हदें पार कर दी। आपने कहा की अगर कोई आपको अपने बल में कर लेता है, तो उस क्षण में लड़की को आत्मसमर्पण कर देना चाहिए, क्योंकि इससे कम से कम उसकी जान तो बच जाएगी।
मेरी बेटी के विरोध का आपने निरादर तो किया ही, लेकिन साथ ही सामाजिक सोच के घटिया, पित्रसतात्मक रवैय्ये को भी आपने बखूबी दर्शाया। मेरी बेटी के बलात्कारियों ने भी बिलकुल यही कहा और सोचा था, कैसे उसका विरोध वे बर्दाश्त नहीं कर पाए थे।
तो आप जैसे समाज के कर्ताधर्ताओं की सोच और अपराधियों की सोच में, मुझे तो कोई भी अंतर नहीं नज़र आता। आप सभी लड़कियों को यही बतला रहे हैं की आप कमज़ोर ही रहिए, और अपने समझौतों से भरी जिंदगियों को जीते रहें। जब कोई अपनी बलवानी आप पर ज़बरदस्ती आज़माएँ, तो आप उससे अपनी शांति बनाये रखें।
अंत में मैं यह भी पूछना चाहूंगी की क्या यही सलाह हमें अपने भारतीय सेनानियों को भी देनी चाहिए? क्या उनसे कह देना चाहिए, जो हमारी सीमाओं की रक्षा दिन-रात करतें हैं, की जब अगली बार आप पर हमला हो, तो आप अपने हथियार फ़ेंक दें? आत्मसमर्पण कर दें?
कम से कम इससे हमारे जवानों की जाने तो बच जाएंगी।
(संगलियाना ने ये आपत्तिजनक टिप्पणियाँ 9 मार्च को बेंगलुरु में महिला दिवस के एक कार्यक्रम के दौरान की थीं। इस कार्यक्रम में कुछ महिलाओं को सम्मानित किया जा रहा था और आशा देवी को ख़ास मेहमान के रूप में आमंत्रित किया गया था।)