जिला बांदा, ब्लाक नरैनी, गांव करतल किसान बसंता के 2 अगस्त का मउत होइगे है। वहिके मउत होय से परिवार मा दुःख का माहौल बना हैं ।
बसंता के औरत कारी देवी का कहब है कि मोरे मनसवा का बुखार आवत रहै। मैं मनसवा से मना कीने रहौं कि खेत नहीं जाये का है, पै वा नहीं सुनिस अउर खेत चला गा। वहै दिन पानी बरसत रहै। यहिसे वा खूबै भीग गा रहै। जबै वा मर गा तौ गांव के मड़ई आ के बताइन।
बसंता के लड़का महेश प्रसाद का कहब है कि गम लोगन के ऊपर एक लाख रुपिया का कर्जा है। लाल राशन कार्ड तौ बना है, पै गरीबी बहुतै ज्यादा है। मोर बाप सदमा के कारन मर गा है। बाप के मरै के समय मउके मा एस.
डी.एम.आय रहै। उंई तीस हजार रुपिया दें का कहिन हैं। गांव का प्रधान राम किशोर पांच सौ रुपिया बस दिहिस है।
बसंता के लड़की सीता का कहब है कि मोर बाप गरीबी अउर कर्जा के होय के कारन सदमा से मर गा है। काहे से कि मैं भी बीमार रहत हौं। दुई साल से मोरे गोड़ मा बात लाग गे है। मैं चल नहीं पावत हौं। या कारन से बाप परेशान रहत रहै। मोरे इलाज मा रुपिया लागत रहै। यहिसे बाप का अउर ज्यादा चिंता बनी रहत रहै। वा सोंचत रहै कि एक तौ लड़की जात है ऊपर से लांगर है।
प्रधान राम किशोर कहिस कि बसंता का बुखार आवत रहै। वा खेत या सोंच के गा रहै कि खेत मा अरहर बो लेंव,पै जइसेन खेत गा तौ गिर गा रहै। हुंवा के मड़ई देखिन तौ वहिके लगे गे,पै तबै तक बसंता मर चुका रहै। मैं बसंता के परिवार वालेन का पांच सौ रुपिया दीने हौं। यहिसे ज्यादा अउर का कइ सकत हौं।
बसंता के औरत कारी देवी का कहब है कि मोरे मनसवा का बुखार आवत रहै। मैं मनसवा से मना कीने रहौं कि खेत नहीं जाये का है, पै वा नहीं सुनिस अउर खेत चला गा। वहै दिन पानी बरसत रहै। यहिसे वा खूबै भीग गा रहै। जबै वा मर गा तौ गांव के मड़ई आ के बताइन।
बसंता के लड़का महेश प्रसाद का कहब है कि गम लोगन के ऊपर एक लाख रुपिया का कर्जा है। लाल राशन कार्ड तौ बना है, पै गरीबी बहुतै ज्यादा है। मोर बाप सदमा के कारन मर गा है। बाप के मरै के समय मउके मा एस.
डी.एम.आय रहै। उंई तीस हजार रुपिया दें का कहिन हैं। गांव का प्रधान राम किशोर पांच सौ रुपिया बस दिहिस है।
बसंता के लड़की सीता का कहब है कि मोर बाप गरीबी अउर कर्जा के होय के कारन सदमा से मर गा है। काहे से कि मैं भी बीमार रहत हौं। दुई साल से मोरे गोड़ मा बात लाग गे है। मैं चल नहीं पावत हौं। या कारन से बाप परेशान रहत रहै। मोरे इलाज मा रुपिया लागत रहै। यहिसे बाप का अउर ज्यादा चिंता बनी रहत रहै। वा सोंचत रहै कि एक तौ लड़की जात है ऊपर से लांगर है।
प्रधान राम किशोर कहिस कि बसंता का बुखार आवत रहै। वा खेत या सोंच के गा रहै कि खेत मा अरहर बो लेंव,पै जइसेन खेत गा तौ गिर गा रहै। हुंवा के मड़ई देखिन तौ वहिके लगे गे,पै तबै तक बसंता मर चुका रहै। मैं बसंता के परिवार वालेन का पांच सौ रुपिया दीने हौं। यहिसे ज्यादा अउर का कइ सकत हौं।
रिपोर्टर- गीता
10/08/2016 को प्रकाशित
एक किसान की ज़िन्दगी की कीमत – 500 रुपये
बाँदा जिले के नरैनी ब्लॉक के करतल गाँव में किसान की मौत