भाई वाह। अगर आप भी हियां होते तौ लम्बी लम्बी साँस लियत होते काहे से देशी गुलाब कै खुशबू कुछ एसेन ही हुआथै। ऐसी खुशबू यहि देश मा तौ का पूरी दुनियां मा न होये । अंग्रेजी रोज तौ बिलकुल फीका परि जाथै हमरे देशी गुलाब के सामने। यही से तौ यहि खुशबू का बोतल मा भरिके बाहर भेजा जाथै इत्र के रूप मा। अउर सजै संवरे के सामान के तरह भी। स्वतंत्रता दिवस के यहि मौका पै ई खास खुशबू हमै एक जगह लै जाथै।
देशी गुलाब के मोह से तौ सहनशाह भी नाय बच पाये । यही एतिहासिक माहौल का दर्शावाथै गुलाब बाड़ी, फैजाबाद कै शान अउर पहचान दुइनौ । उन्नीसवीं सदी मा राज करै वाले शुजा-उद-दौला हियां कै तीसरे नवाब रहे । यै नवाब वहि समय हुकूमत चलावत रहे जब फैजाबाद अवध कै राजधानी रही। वहि ज़माने कै एक जीती जागती मिशाल आय गुलाबबाड़ी, जब एक अलग ही शायराना मिजाज हियां के रग-रग मा बसा रहत रहा।
तहजीब अउर तकल्लुफ कै एक अनोखा अंदाज नाच गाना अउर शेरो शायरी यही सब मा मगन रहा फैजाबाद, कहा जाथै मसहूर उमराव जान भी यहि अंदाज कै लुत्फ़ उठावत रहिन अउर पेश करत रहिन इन्ही दरबार मा जब फैजाबाद कै राजधानी लखनऊ होय गए। तबसे मानों यही तहजीब भी घर बदललेहे हुवय अवधी अंदाज का छोड़ अब सब लखनवी अंदाज कै ही बात कराथिन।
सिंहासन पै राज करत नवाब का गुलाब अउर यकरे खास सुगंध से बहुत लगाव रहा । वै गुलाबबाड़ी मा टहरे मन हल्का करै, अउर हुकूमत से जुड़ा फैसला लियै आवाकरत रहे । ठीक वही तरह जिस तरह हम अउर आप रोज की दिनचर्या के शोर से भागके सुकून कै कुछ पल ढूढ़त रही थी । इहै वजह रही अपने मन पसंद बाग़ का नवाब आपन आखिरी मंजिल बनावै कै फैसला लिहिन।
नवाब शुजा-उद-दौला कै मकबरा गुलाबबाड़ी मा बनावावागा अउर यहीं से डेढ़ किलोमीटर के दूरी पै उनकै रानी बहू बेगम जोहर कै मकबरा बनवावा गा। जेकरे बनावट कै कीमत कुछ तीन लाख रही। वहि जमाना के ताई बहुत बड़ी रकम अउर जरा सोचा जाय यकरे ताई कर प्रजा ही भरत रही|
गुलाबबाड़ी कै बनावट इस्लामी सभ्यता से अलग बाय जेसे हम मुग़ल विरासत तक ही जोड़के रह जाईथी। यकीनन आगरा कै ताजमहल अउर दिल्ली मा हुमायू कै मकबरा लाजवाब बाय। लकिन गुलाबबाड़ी जैसी गैर मुग़ल इमारत भी इस्लामी बिरासत अउर भारतीय सभ्यता कै एक अनमोल हिस्सा बाय। यके विशालकाय गुम्बद, या दरवाजा यका घेर के रखाथिन इनकै अद्भुद्ता कउनौ अन्य मुग़ल इमारत से कम नाय बाय। भले ही आज भूली बिसरी याद मा बदल गए हुवय। यही कारन आज हियां मनई टहरै यानी टाइम पास करै के ताई आवाथिन आसपास के जिला से घूमै, इश्क लड़ावै या फिर खेलै आवाथिन। गुलाब से ज्यादा अब नजारा इनही सबके रहाथै।
मनोज जायसवाल स्थानीय निवासी नवाब के समय कै ऐतिहासिक धरोहर आय। पार्क नाय बाय तौ शहर के बीचोबीच हुवय से मनई सुबह टहरै आवाथिन।
भारत सरकार द्वारा ड्राफ्ट किया गए प्राचीन स्मारक अउर पुरातत्त्व स्थल या ए एम् ए एस आर एक्ट के अनुसार गुलाबबाड़ी जैसी प्राचीन इमारत कै देखरेख हुवब अनिवार्य बाय।
इन्दू प्रकास लखनऊ मंडल अध्यक्ष गुलाब बाड़ी अउर बहू बेगम कै मकबरा हमरे लखनऊ मंडल से बाहर बाय।
नूर आलम कर्मचारी गुलाबबाड़ी कै कहब बाय की देशी वाला गुलाब हियां बेचा जाथै बाकी सो के ताई बाय।
रिपोर्टर-संगीता
Published on Aug 18, 2017