खबर लहरिया ताजा खबरें अम्बेडकर जयंती: संविधान पर सामाजिक व्यवधान

अम्बेडकर जयंती: संविधान पर सामाजिक व्यवधान

डॉ भीमराव आंबेडकर भारत के संविधान कर रचियता थे जो दुनिया का सबसे बड़ा संविधान माना गया है। संविधान के अंदर मौलिक अधिकारों की बहुत अहम और जरूरी भागीदारी है। इन मौलिक अधिकारों को जीवन जीने के मूल्य से बराबरी की गई है। इसीलिए संविधान की नजर में सभी नागरिक बराबर हैं। आज के माहौल ने भले ही इस संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हों लेकिन इसके बिना नागरिक की कल्पना नहीं की जा सकती।

लगातार इस बदलते माहौल में हमने कवरेज के अपने लंबे समय में जाति और धर्म आधारित कई तरह के भेदभावपूर्ण व्यवहार देखें हैं। संविधान के अंदर जिनको खास ध्यान दिया गया आज उन्हीं का हर तरह का शोषण किया जा रहा है। पेश हैं हमारी रिपोर्टिंग के कुछ अंश, जहां पर गरीब, दलितों और असहायों का शोषण हुआ। सीमा कहती हैं कि उनके साथ इतना बड़ा भेदभाव क्यों हुआ।

क्या उनको जीने का अधिकार नहीं है? क्या इस धरती में अमीर लोग ही रहेंगे। क्या वह सपने नहीं देख सकते। बांदा शहर की बाल्मीकि बस्ती के लोग बताते हैं कि वह जहां रहते हैं वहां की सफाई खुद करने को बोला जाता है। कहा जाता कि अगर वह हर जगह की सफाई करते हैं तो अपने मोहल्ले की क्यों नहीं। पूरी जन्दगी बीत गई इस हाल में रहते हुए। उन्होंने यह भी बताया कि अगर वह हॉट बाज़ार जाते हैं और लोग अगर पहचानते हैं तो दूर से सौदा देंगे। यहां तक कि चाय की गिलास या ठण्डा की बोलते धुल कर देना पड़ता है।

The mandatory Ambedkar statue in Banda asks us if we truly remember?

हमने चमड़े का काम करने वाले लोगों से जाना तो उन्होंने बताया कि वह अपने आप खुद को बहुत ही नीचे श्रेणी का व्यक्ति मानते हैं। खुद लोगों को नहीं छूते। लोगों के मवेशी मरने पर हमें ही फोन आता है। काम कराया तो लिया जाता है लेकिन सम्मान तो कभी नहीं मिलता। देश के अंदर रहने वाले लोगों को मतदाता जरूर माना जाता है सिर्फ वोट की संख्या बढ़ाने या चुनाव जीतने के लिए लेकिन उनको उन सुविधाओं से वंचित रखा गया जिसके आधार पर उनको मतदाता माना जाता है। उनका हक और अधिकार है।

सबसे बड़ा भेदभाव का उदाहरण देखने को मिला पिछले साल लॉक डाउन के समय वापस लौटता सड़क में चलता मजदूर का हुजूम। न भूख, न प्यास, न रास्ता और न भटक जाने की चिंता। हम कितने उदाहरण गिनाएंगे और इनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है। इसमें बदलाव कैसे लाया जा सकता है। वह दिन कब आएगा जब संविधान की नजर में सब एक लिखे शब्द साकार होंगे? बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी के पथ पर चलने की बातें में भी भेदभाव ही है जब लोग दावे तो करते हैं लेकिन चल नहीं पाते।