खबर लहरिया औरतें काम पर संपत से लेकर दद्दू, आशाएं, उम्मीदें जोरो पर, चित्रकूट में प्रत्याशी चलें नामांकन के लिए

संपत से लेकर दद्दू, आशाएं, उम्मीदें जोरो पर, चित्रकूट में प्रत्याशी चलें नामांकन के लिए

संपत पाल की गुलाबी गैंग से विधानसभा तक का सफर प्रशंसनीय और रोमांचक है। संपत 1960 में बांदा के एक गरीब परिवार में जन्मीं। 12 साल की उम्र में एक सब्जी बेचनेवाले से उनकी शादी हो गई। चित्रकूट के रॉलीपुर में अपने ससुराल में संपत की शुरुआती जिंदगी मुश्किलों भरी रही। लेकिन अपने घर से गांव के एक हरिजन परिवार को पीने के लिए पानी देने की घटना ने संपत के जीवन को पूरी तरह बदल दिया। संपत को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। गांव की पंचायत ने उन्हें गांव से बाहर कर दिया। संपत गांव छोड़ परिवार के साथ बांदा के कैरी गांव में बस गई।
संपत ने सिर्फ अपना ससुराल छोड़ा था, लेकिन मजबूर और कमजोर के खिलाफ आवाज उठाने का इरादा उन्होंने नहीं छोड़ा। एक दिन अपने पड़ोस की एक महिला के साथ उसके पति को मार-पीट करते हुए संपत ने देखा। संपत ने उसे रोका, लेकिन तब उस व्यक्ति ने इसे अपना पारिवारिक मामला बता कर उन्हें बीच-बचाव करने से रोक दिया। इस घटना के बाद उस शख्स को सबक सीखाने के लिए संपत ने पांच महिलाओं को एकजुट कर उस व्यक्ति को खेतों में पीट डाला और यहीं से शुरुआत हुई गुलाबी गैंग की।
साल 2011 में अंतरराष्ट्रीय अखबार द गार्जियन ने संपत पाल को दुनिया की सौ प्रभावशाली प्रेरक महिलाओं की सूची में शामिल किया, जिसके बाद कई देसी-विदेशी संस्थाओं ने उनपर डॉक्यूमेंट्री फिल्में तक बना डाली।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी संपत का जलवा देखने को मिल रहा है। पिछले दिनों संपत ने कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चित्रकूट के मऊ मानिकपुर क्षेत्र से नामांकन भरा। उन्होंने लोगों के लिए जमीनी रूप से काम करने और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गांव के लोगों से वादा किया। संपत कोल आदिवासी महिलाओं का साथ देने वाली इकलोती महिला हैं। उन्होंने कड़े संघर्ष से अपना नाम कमाया है और आज इसी के बल पर समाज के बीच चुनावी प्रत्याशी के रूप में उतरी हैं।
संपत कहती हैं, “हमारे बुंदेलखंड में अभी तक जितने भी विधायक जीते हैं उन्होंने सिर्फ अपने लिए पैसा बनाया है। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद विकास हुआ होता। मेरे मानिकपुर विधानसभा क्षेत्र में सड़कों की दुर्गति है। किसी भी विधायक के लिए ये पहला मुद्दा होना चाहिए लेकिन पता नहीं क्यों आज तक विधायकों ने इसे कोई मुद्दा ही नहीं माना”।
उन्होंने आगे कहा, मेरी पहली प्राथमिकता में किसानों के लिए सरकारी ट्यूबवेल की व्यवस्था करवाना होगा। दरअसल यहां ज्यादातर सरकारी काम कमीशन पर ही होते हैं। मैं अगर विधायक बनती हूं तो कोशिश करूंगी कि कम से कम अपने विधानसभा क्षेत्र में कमीशनखोरी कम करूं।
यही नहीं, मेरे गुलाबी गैंग के बारे में सभी लोग जानते हैं। मेरे पास इलाके के सभी हिस्सों में गैंग से जुड़ी महिलाएं हैं। मैं उनका इस्तेमाल भी क्षेत्र समस्याएं जानने और उससे निपटने के लिए करूंगी।

रिपोर्टर- नाजनी रिजवी

Published on Feb 8, 2017