खबर लहरिया औरतें काम पर शरणार्थी सीरियाई महिलाओं ने पाया लेबनान में अपनापन और रोजगार

शरणार्थी सीरियाई महिलाओं ने पाया लेबनान में अपनापन और रोजगार

18 साल की हिबा कमाल 5 साल पहले सीरिया छोड़ जब लेबनान आई, तब अपने देश से दूर होने पर उन्हें ख्याल आया कि “जब हमें हमारे देश से जबरन बाहर निकाला जा रहा था तब मैंने यह नहीं सोचा था कि हमें लेबनान में एक सदस्य की तरह ‘क्फ़ीर विमेंस वोर्किंग ग्रुप’ महिला समुदाय में स्वीकार किया जायेगा।”
हिबा उन ढेड़ लाख लोगों में से एक हैं जो सीरिया और उनके आस-पास के देशों से अलग हो कर लेबनान में रह रहे हैं। वास्तव में, शरणार्थियों का अधिक आना देश की अर्थव्यवस्था पर कुल आबादी का 25% अधिक दबाव डाल रहा है। जिसकी वजह से लेबनान में सार्वजनिक सेवाओं और सीमित संसाधनों के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ रोजगार की मांग भी बढ़ गई है।
रोजगार और बढ़ते बाजारों की मांग को सुधारने के लिए लेबनान के एक गैर सरकारी संगठन अमेल एसोसिएशन लेबनानी ने तीन वर्षीय 2012-15 तक आजीविका परियोजना शुरू की जो दक्षिण और लैंगिक समानता के लिए संयुक्त राष्ट्र महिला कोष के साथ बेरूत के उपनगरीय इलाके में मिल कर कार्य कर रही है। इस परियोजना में 1,000 से अधिक ग्रामीण और शरणार्थी महिलाएं शामिल हैं जो उच्चतम गुणवत्ता और स्वच्छता मानकों का पालन करते हुए उच्च कोटि के ब्रांड, कढ़ाई, हस्तशिल्प, जैविक और कृषि-खाद्य के सामान तैयार करती हैं। यह परियोजना इन्हें आत्मनिर्भर बनाने का कार्य कर रही है। इसके साथ ही इनकी मेहनत से लेबनान की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक असर पड़ रहा है। इस परियोजना के कारण आज कपड़ों का बड़ा ब्रांड मीना इन शरणार्थीयों के हस्तकौशल का गवाह बन रहा है। इससे दोनों समुदायों को लाभ हुआ है।
लेबनान में लैंगिक समानता के लिए संयुक्त राष्ट्र महिला कोष के लिए कार्यक्रम विशेषज्ञ राणा नोट अल-हौजेइरी का कहना है कि “इस परियोजना का महत्व यह है कि यह संस्कृति और शरणार्थी महिलाओं के कौशल का सम्मान करता है और उन्हें समुदाय में मिलने में मदद करता है। यह एक मॉडल की तरह काम करता है और महिलाओं को उनके नाजुक समय में उनके स्वयं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए प्रोत्साहित करता है। साथ ही इन सभी को एक साथ, एक समान लक्ष्य के लिए काम करने के लिए इस प्रकार सामाजिक स्थिरता के रूप में एक साथ लाता है।“
लेबनान और अन्य देशों में अब इसी तरह फंड और सामूहिक समर्थन द्वारा इस पहल को सफलता तक पहुँचाया जा रहा है।

फोटो और लेख साभार: यूथ की आवाज़