खबर लहरिया जवानी दीवानी विवाद अच्छे हैं? पद्मावती फिल्म की सारी उलझन ये पढ़कर सुलझाएँ!

विवाद अच्छे हैं? पद्मावती फिल्म की सारी उलझन ये पढ़कर सुलझाएँ!

आप किसी खबर पर कब ज्यादा ध्यान देते हैं, जब वो खबर की सुर्खियों पर तीन-चार बार आ जाए। सुर्खियों में आने के लिए विवाद बड़ा होना चाहिए। विवाद सिर्फ सुर्खियां और विवाद ही नहीं आते बल्कि अपने साथ ‘दो की खरीद में एक मुफ्त’ जैसी स्क्रीम के साथ प्रचार फ्री में लाते हैं। हाल के दिनों में संजय लीला भंसाली की पद्मावती बहुत विवादों में है। विवादों का साथ फिल्म की शूटिंग के दिनों से ही शुरु हो गया था, जब संजय लीला भंसाली की पिटाई करणी सेना द्वारा हुई थी।
1 दिसंबर को रिलीज होने वाली ये फिल्म विवादों के कारण अभी रिलीज नहीं हो रही है। फिल्म के विरोध को देखते हुए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी प्रदर्शन पर रोक की बात कह दी है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने केंद्र से गुज़ारिश की फिल्म को रिलीज़ ना होने दे, वरना राज्य में उत्पाद और हिंसा होने की संभावना है। वहीँ गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने इस फिल्म में गुजरात चुनाव तक प्रदर्षन रोक दिया है, जबकि चुनाव के बाद इसके प्रदर्शन के बारे में सोचा जाएगा। वहीं केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के प्रमुख प्रसून जोशी ने इस बात पर निराशा जाहिर की है की फिल्म को सेंसर बोर्ड से पहले कुछ पत्रकारों को दिखाया गया था।
क्या है विवाद?
भारतीय पुरात्तव एवं सर्वेक्षण विभाग के अनुसार राजा रतन सिंह को हराने के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मिनी या पद्मावती के अक्स को शीशे में देखा था। लेकिन ये भी जान ले की कुछ इतिहासकार पद्मावती के होने की बात ही काल्पनिक कहते हैं। वहीं दूसरी ओर भक्तकाल के कवि मोहम्मद जायसी की रचना पद्मावती में वर्णन कुछ अलग है, जिसमें नाटकीय और कल्पनिकता को शामिल किया गया है, लेकिन विवाद संजय लीला भंसाली के साथ ये हुआ की राजस्थान की राष्ट्रीय करणी सेना ने इस फिल्म को राजपूताना शान का विषय बना दिया।
विवादों में हैं तो क्या गम है!
आजकल फिल्मों में विवादों का होना फायदेमंद ही होता नजर आ रहा है। बिना विज्ञापन में ज्यादा पैसा बहाए भरपूर प्रचार हो जाता है। किसी भी उत्पाद के लिए विज्ञापन कितना महत्तपूर्ण होता हैं, ये आप इस बात से लगा सकते हैं कि उत्पाद को बनाने से दुगुना-चौगुना पैसा विज्ञापन में खर्च किया जाता है। अब इस फिल्म में देख लें कि  फिल्म की कुल लागत 1 सौ 80 करोड़ रुपया है और सूत्रों के अनुसार संजय लीला भंसाली अभी तक इस फिल्म की पूरी लागत फिल्म के राइट्स बेचकर वसूल चुके हैं। तो रिलीज होने पर जो भी कमाई होगी वो शुद्ध लाभ होगा।
इतिहास को बदलना भी कितना सही?
पद्मावती को लेकर पूरा विवाद इतिहास के साथ छेड़छाड़ बताई जा रही है। पर ये सिर्फ इस फिल्म के साथ ही नहीं हैं, बल्कि मुगल-ए-आजम से लेकर जोधा अकबर तक है। इतिहासकारों के अनुसार मुगल-ए-आजम में मुख्य किरदार अनारकली जैसा कोई पात्र वास्तविकता में नहीं था। लेकिन इस फिल्म की रिकॉर्ड तोड़़ कमाई ने ऐतिहासिक फिल्मों के चलन को बढ़ा जरुर दिया। इतिहासकारों के अनुसार इस तरह की फिल्मों में इतिहास के साथ ये खिलवाड़ अपने व्यावसायिक लाभ के लिए किए जाते हैं। फिल्म को चलाने के लिए उसमें भरपूर मनोरंजन भरा जाता है। इस फिल्म पर दिन ब दिन हिंसक होते विरोध को देखते हुए यह प्रष्न भी मन में आ रहा है, कि क्या मनोरंजन परोसना फिल्मों का मकसद है या फिर सत्य को ज्यों का त्यों बताना भी इनकी जिम्मेदारी है।
विरोध, प्रचार और विवाद, सब पैसों का खेल!
राष्ट्रीय करणी सेना राजपूताना आन, शान का रखवाला बनकर उभरी है। लेकिन इस संगठन पर भी इसतरह के विवाद से विरोध, प्रचार और कमाई का खेल खेलने का आरोप है। करणी सेना पद्मावती फिल्म को पद्मावती रानी के सम्मान से खिलवाड़ कह रहे हैं, पर ये भी ध्यान देना चाहिए कि महिला सम्मान पर लड़ने वाले दीपिका पादुकोण की नाक काटने के बात भी कह चुके हैं। ये विरोध कितना सच्चा हैं, इस पर भी शंक होना चाहिए क्योंकि इसतरह के विरोध के बाद कई बार फिल्मों को उम्मीद से ज्यादा फायदा होता है।
खैर फिल्म तो आज नहीं कल रिलीज होगी ही। लेकिन उन अनजान लोगों का क्या जो इस विरोध, प्रचार और कमाई के खेल को नहीं समझ पाते हैं और जो कुछ दिखाया जा रहा है, उसे सच समझ रहे हैं और जाने-अनजाने इस लड़ाई में हिस्सा ले रहे हैं।
बाइलाइन :- अलका मनराल
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