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रोजगार की तलाश में बेरोजगार

साभार: विकिपीडिया

इंसान की तीन मूल जरुरतें- रोटी, कपड़ा और मकान, ये तीनों जरुरतें पूरी कैसे हो भाई! जब देश में रोजगार मिलने के अवसरों में 84 प्रतिशत की कमी आ गई है। देश के सबसे बड़े प्रदेश यानी उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी की संख्या देखे तो शायद आपको निराशा होगी, क्योंकि 2015 से 2016 के आंकड़ें देखें तो प्रदेश में 1000 में 58 लोग बेरोजगार हैं, जबकि देश में ये संख्या 37 के करीब है। श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2015-16 में 18 से 29 की उम्र वाले एक हजार युवाओं में 148 युवा बेरोजगार हैं। वहीं पूरे देश के आंकड़े देखें तो कुल 102 है।

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बेरोगारी के कुछ किस्से बुंदेलखंड से

महोबा जिले के कमालपुर में 25 साल के बलराम का एक सपना है। सपना सरकारी नौकरी में काम करने का। बलराम सिर्फ सपने ही नहीं देखते हैं बल्कि उसे पाने के लिए जी तोड़ मेहनत भी कर रहे थे और कर रहे हैं भी। लेकिन 4 साल से कोचिंग सेंटर में चक्कर काटने के बाद भी आज वो तैयारी कर रहे हैं। कई फार्म भरने के बाद होता क्या है? कभी वो पास नहीं हो पाते है, तो कभी पेपर रद्द और कभी तो पेपर का प्रवेश-पत्र ही नहीं आता है। अब बलराम ने निश्चिय किया है कि वह एक-दो साल और तैयारी करेंगे। अगर सरकारी नौकरी लगी तो ठीक नहीं तो वो घर की दुकान ही देखेंगे।

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चिट फंड कम्पनियां को भी दे रही है हवा ये बेरोजगारी

चिट फंड कम्पनियों का नाम तो सुना ही होगा आपने? थोड़ा पैसा लगाएं और लोगों को भी इसमें जुड़ने को कहें और श्रृंखला को आगे बढ़ाएं। लोगों को लाखपति बनाने का सपना दिखाने वाली ये कम्पनियां लोगों को बेवकूफ बनाकर रफूचक्कर हो जाती हैं। ऐसा ही हुआ बांदा जिले में जहां लोगों ने अपनी मेहनत की कमाई को पर्ल्स समुह में लगा दिया था। इस ही कम्पनी से जुड़े गणेश प्रसाद शर्मा कहते हैं कि कुछ लोगों को तो लाभ होता था, पर गरीब जनता का पैसा भी फंस जाता है। वहीं रामकुमार प्रजापति इस कम्पनी के एजेंड बने सोचा कि बेरोजगारी से मुक्ति तो मिली पर ये क्या कम्पनी पैसा लेकर निकल ली। अब रामकुमार को हर दिन धमकियां मिलती हैं कि अगर वो लोगों का पैसा नहीं देंगे तो उनकी जमीन, दोपहिया गाड़ी से लेकर उनकी हर निजी संपति ले लेंगे।

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डिप्लोमा अगर नौकरी दे तो

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कम्प्यूटर सेंटर के बाहर कम्प्यूटर डिप्लोमा लेने वालों की भी भीड़ लगी है, और लगे भी क्यों नहीं क्योंकि छोटी-मोटी नौकरी तो आप इसे पा ही सकते हैं। चित्रकूट के कर्वी कस्बे में रहने वाली नीलम नौकरी के लिए ही तो कम्प्यूटर डिप्लोमा ले रही हैं। रमेश यादव कम्प्यूटर प्रशिक्षक कहते हैं कि तीन-चार महीने के कोर्स में तो सिर्फ बेसिक कम्प्यूटर ही जान पाते हैं। साल दो साल का डिप्लोमा करने के बाद ही नौकरी मिलती है। लेकिन गारंटी वो भी नहीं देते और दे भी कैसे जब नौकरी का टोटा हो तो।

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कुछ अच्छी खबर!

बांदा जिले के बड़ोखर खुर्द ब्लॉक के पचनेही गांव इस गांव की खासियत है कि यहां के लोग सरकारी महकमे के उच्च पदों पर हैं। गांव के बुजर्ग चन्द्र पाल बताते हैं कि हमनें बच्चों को पढ़ाने के लिए झांसी और इलाहाबाद जैसे षहरों में भेजा है। आपको बता दें कि चन्द्र पाल के भतीजे राजा बाबू यादव भारत-तिब्बत सीमा बल में आई.जी के पद में हैं। वह गांव के विकास के लिए छोटे-मोटे कार्यक्रम भी करते रहते हैं।

इस ही गांव की कौशल्या देवी के बेटे राजेश सिंह ए.आर.टी.ओ के पद पर अमरोह में काम कर रहे हैं। वहीं बाबू लाल वर्मा के भाई सेल्स टैक्स में ऑफिसर है। गांव में अधिकतर लोगों के पास सरकारी नौकरी है। इसका कारण पूछने पर गांव के लोग बताते हैं कि हमारे गांव में पढ़ाई पर खास ध्यान दिया जाता है।

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बड़ोखर खुर्द ही अकेला गांव नहीं बल्कि चित्रकूट जिले के कर्वी ब्लॉक के रैपुरा गांव में भी 70 प्रतिषत लोगों के पास सरकारी नौकरियां हैं। इस गांव के बच्चे देश के बड़े शहरों से लेकर विदेशों तक में काम कर रहे हैं। गांव कुर्मी बहुलक क्षेत्र है। कुर्मी और अन्य जातियों का प्रतिशत पर नजर डालें तो अन्य पिछड़ी जाति (कुर्मी) 45 प्रतिशत, सामान्य जाति 15 प्रतिशत और अनुसूचित जाति 6 प्रतिशत है।

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अलका मनराल