खबर लहरिया अतिथि कॉलमिस्ट यू.पी. की हलचल – पंचायतों में औरतें कम क्यों?

यू.पी. की हलचल – पंचायतों में औरतें कम क्यों?

स्वाति माथुर

स्वाति माथुर

स्वाति माथुर लखनऊ के जाने-माने अंग्रेजी अखबार में राजनीति, सरकारी मुद्दे और नीति निर्माण से जुड़े मुद्दों पर लिखती हैं। उन्हें खेती, ग्रामीण जीवन और औरतों के बारे में भी लिखना पसंद है।

प्रदेश में पंचायत चुनाव होने ही वाले हैं। हर बार की तरह इस बार भी पंचायतों में औरतों के लिए पचास प्रतिशत सीटों के आरक्षण का मुद्दा जहां का तहां खड़ा है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की तरफ से अगस्त 2009 में औरतों के आरक्षण के मुद्दे को लेकर बने विधेयक में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी जा चुकी है। इस मंजूरी के बाद कई राज्यों ने पंचायतों में औरतों के लिए पचास प्रतिशत सीटें आरक्षित करने वाला बिहार पहला राज्य बना। महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश, केरल और कर्नाटक में यह भी आरक्षण लागू किया गया।
मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में चैदह सौ पैंतालिस सीटें हैं। इसमें महिला प्रधानों की मौजूदगी करीब साढ़े तैंतिस प्रतिशत है। कम सीटों के कारण पंचायतों में महिलाएं कम ही पहुंचती हैं। जो पहुंचती भी हैं वह रबड़ स्टैंप की तरह होती हैं। ‘प्रधानपति‘ अनौपचारिक रूप से एक पद बन चुका है। पंचायती मुद्दों से जुड़े फैसले महिला प्रधान के पति या दूसरे करीबी पुरुष लेते हैं।
समाजवादी पार्टी की सरकार ग्रामीण उत्तर प्रदेश को मजबूत बनाने पर इस साल बहुत जोर दे रही है। लेकिन अभी ऐसा नहीं लगता कि पंचायतों के स्तर पर कुछ किया जा रहा है। पंचायतों का वित्तीय और राजनीतिक सशक्तिकरण करने में देश में उत्तर प्रदेश का बीसवां नंबर है। केरल में पंचायतों के पास उनतिस विभागों से संबधित फैसले लेने का अधिकार है। जबकि उत्तर प्रदेश में पंचायत के प्रतिनिधि बारह विभागों के सोलह विषयों पर ही फैसला ले सकते हैं। औरतों की सीमित भूूमिका ने इस स्थिति को बद से बदतर किया है।
उत्तर प्रदेश में इस साल होने वाले पंचायती चुनावों में महिला वोटरों की संख्या करीब पांच करोड़ा है, पुरुष करीब साढ़े छह करोड़ हैं। यह सारे वोटर इक्यावन हजार नौ सौ चैदह ग्राम पंचायतों, आठ सौ इक्कीस ब्लाक पंचायतों और दो हजार छह सौ चैबीस जिला पंचायतों के लिए वोट करेंगे। अगर उत्तर प्रदेश को अपनी स्थिति मजबूत करनी है तो उसे औरतों को ठोस रूप से पंचायतों में लाने के प्रयास करने होंगे।
औरतों के राजनीतिक सशक्तिकरण के जरिए शिक्षा, सेहत के स्तर को बढ़ाने के साथ ही समाज को आगे बढ़ाया जा सकता है। खुद औरतों को भी अपने हक के लिए पतियों की छत्र छाया से बाहर निकलना होगा।