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यूपीकोका कितना सही?

साभार: योगी आदित्यनाथ.इन

उत्तर प्रदेश सरकार ने महाराष्ट्र के मकोका की तर्ज पर यूपीकोका विधेयक पेश किया। इस कानून को लाने का मकसद सरकार आतंक और हिंसा को उखाड़ फेंकना बता रही है। साथ ही प्रदेश की कानून व्यवस्था को सुधारना भी है। उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण (यूपीकोका) विधेयक 2017 मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में पेश किया था। सरकार का इस विधेयक को लाने का मकसद  मौजूदा संगठित अपराध कम करना है। संगठित अपराध के खतरे को कम करने के लिए संपत्ति की कुर्की, रिमांड की प्रक्रिया, अपराध नियंत्रण प्रक्रिया, जल्दी न्याय के लिए विशेष न्यायालयों के गठन करना है। विधेयक में अपराध को बताया गया है कि फिरौती के लिए अपहरण, सरकारी ठेके में शक्ति प्रदर्शन, खाली या विवादित सरकारी भूमि या भवन पर जाली दस्तावेजों के जरिए या बलपूर्वक कब्जा, बाजार और फुटपाथ विक्रेताओं से अवैध वसूली, अवैध खनन, धन की हेराफेरी, मानव तस्करी, नकली दवाओं, अवैध शराब का कारोबार आदि को इसमें रखा गया है। विधेयक में संगठित अपराध के लिए कठोर सजा का प्रावधान किया गया है।
ऐसा माना जा रहा है कि यूपीकोका जैसे कानून का दुरुपयोग होगा, तो समाज के वंचित, गरीब, जाति, धर्म और शोषित समाज के लोगों पर इसका प्रयोग ज्यादा होता है। संगठित अपराध क्षेत्र को अगर खत्म करने के लिए पहले के कानून काफी थे, पर उनका सही इस्तेमाल नहीं हुआ। इसतरह के क़ानूनों में देखा गया है कि बड़े आदमी, बड़ी जाति, पैसे और राजनीति से तालुक रखने वालों के खिलाफ कार्रवाई कम हो पाती है.
इस कानून को लाने का मकसद देखें तो जब से योगी सरकार बनी है, क़ानून व्यवस्था के मुद्दे पर आलोचनाओं का शिकार रही हैं। सरकार कानून व्यवस्था सही करने के नाम पर कई मुठभेड़ और उनमें मारे गए दर्जनों अपराधियों का आंकड़ा पेश करती रही है। सरकार के कहा कि छह महीनों के दौरान राज्य में 420 मुठभेड़ हो चुकी हैं, जिनमें 15 अपराधी मारे जा चुके थे। मुठभेड़ में मारे गए लोगों की बड़ी संख्या के कारण सरकार को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का नोटिस भी मिल चुका है। अब देखना ये है कि ये नया यूपीकोका अपराध रोकने में कितना कारगर होगा, पर अभी तो सरकार की मंशा कुछ और ही करने की लग रही है।

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