खबर लहरिया औरतें काम पर भारत में घटती महिला श्रम भागीदारी

भारत में घटती महिला श्रम भागीदारी

भारतीय श्रम में महिलाओं का भी एक बड़ा हिस्सा है लेकिन कुछ विश्लेषणों के अनुसार देश में पांच में से सिर्फ एक शहरी महिला काम पर निकलती है। देश में काम करने वाली महिलाओं की संख्या काफी कम हो गई है। यह देश के जनसांख्यिकीय लाभांश’ के लिए खतरा हो सकता है।
सामाजिक रूप से रूढ़िवादी इस देश में मान्यता है कि अच्छे परिवार की महिलाओं को काम पर नहीं भेजा जाता है। सिर्फ वैसा घर जहां मर्दों को मिलने वाली सैलरी से घर का खर्च बमुश्किल चल पाता है वहां ही औरतें काम पर निकलती हैं।
अगर यही सोच बलवती होती रही तो भारत की अर्थव्यवस्था को विशाल युवा आबादी से जो फायदा मिलता है वो कम हो जाएगा।
हालांकि, माना जा रहा है कि देश 2022 में दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर जर्मनी को पीछे कर देगा।लेकिन संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि 1980 के दशक में भारत की कुल श्रम भागीदारी दर 2011 में 68 प्रतिशत से घटकर लगभग 60 प्रतिशत हो गई थी जो फिलहाल स्थिर है।
अगले कुछ दशकों में, भारत दुनिया की सबसे बड़ी कामकाजी आबादी वाले देश के रूप में चीन की जगह लेने की उम्मीद कर रहा है। लेकिन भागीदारी में महिलाओं की घटती संख्या कहती है कि देश इस जनसांख्यिकीय उछाल का लाभ लेने की स्थिति में नहीं है।
जब तक भागीदारी की दर 70-75 प्रतिशत के बीच नहीं बढ़ती देश विकास के लिए इसका लाभ नहीं ले पाएगा।
एक रिपोर्ट के अनुसार 1991 से जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था खोली, तब से  2013 के बीच जनसंख्या में काम करने वालों की उम्र 30 करोड़ थी। जबकि इनमें रोजगार में सिर्फ 14 करोड़ लोग लग पाए थे। आधे से भी कम लोग रोजगार के जरिए अर्थव्यवस्था को सहारा दे रहे थे।
रिपोर्ट के अनुसार भारत में लेबर फोर्स में आई गिरावट काफी व्यापक है। इनमें पुरुषों और महिलाओं, ग्रामीण और शहरी श्रमिक दोनों शामिल हैं।
वहीँ, ग्रामीण पुरुष इसमें आगे हैं। उनकी भागीदारी 80 प्रतिशत से ज्यादा है। वहीं सबसे कम करीब 20 प्रतिशत शहरी महिलाओं की भागीदारी इसमें दर्ज की गई है।
रोजगार के अवसरों में कमी आई है, खासकर शहरी इलाकों में। ग्रामीण इलाकों में कृषि के अलावा रोजगार में कमी देखी गई है। इसके अलावा सामाजिकसांस्कृतिक कारणों ने भी महिला भागीदारी को कम किया है, घरेलू आय में बढ़ोतरी इसकी एक वजह हो सकती है।