खबर लहरिया ताजा खबरें भारत के गरीबों, स्कूलों तक पहुंचने के लिए तैयार है ‘मोटा अनाज’

भारत के गरीबों, स्कूलों तक पहुंचने के लिए तैयार है ‘मोटा अनाज’

केंद्र सरकार ने स्कूलों में मिडेडेमील में ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाजों को शामिल करने का प्रस्ताव रखा है। साथ ही सरकारी सब्सिडी वाले खाद्य कार्यक्रम को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से संचालित करने का प्रस्ताव भी किया गया है।
यह घोषणा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम की शुरूआत के पांच साल बाद हुई है, जो वितरण के मोटे अनाज प्रदान करता था और कभी मोटा अनाज भारत का प्रमुख आहार था।
भारत के पीडीएस लाभार्थी, जिनमें 813 लाख गरीब लोग और इसकी ग्रामीण आबादी के लगभग 75 फीसदी और इसके शहरी आबादी के 25 फीसदी को 1 रुपए प्रति किलोग्राम पर मोटा अनाज मिलेगा। अभी तक, केवल कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में मोटा अनाज उपलब्ध कराया है। हालांकि, उपलब्ध कराने से पहले सरकार पीडीएस के माध्यम से मोटे अनाज में बदलाव करेगी।
भारत में आधे से अधिक महिलाएं और बच्चों और पांच पुरुषों में से एक में खून की कमी है। इस वजह से वे उत्पादक कामों में हिस्सा नहीं ले पाते हैं और वर्ष 2016 में भारत के कुल घरेलू उत्पाद को 1.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
भारत में बढ़ते मधुमेह के मामलों का एक कारण कुपोषण भी है। मधुमेह अब शहरी गरीबों के साथ ही समृद्ध लोगों को भी प्रभावित कर रहा है।
मोटे अनाज पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करना आसान नहीं है। वर्ष 2010-11 और 2014-15 के बीच भारत का औसत वार्षिक मोटा अनाज उत्पादन 17.7 9 मिलियन टन था। यह 215 मिलियन टन चावल और गेहूं के दसवें हिस्से से भी कम है। इस प्रकार, बाजरे का बड़े पैमाने पर खरीद भारत के फसल पैटर्न में एक क्रांतिकारी परिवर्तन की सिफारिश करता है।मोटे अनाज को औसत भारतीय आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने में भोजन की वरीयता प्रवृत्ति को पीछे जाकर देखना होगा, जो कि पिछले 50 सालों में बदला है।
1960 के दशक तक मोटा अनाज ही प्रमुख भोजन रहा है, जो बाद में गेहूं और चावल से बदला गया। 2010 तक, ज्वार और बाजरा की औसत वार्षिक प्रति उपभोग 32.9 किलोग्राम से 4.2 किलोग्राम पर थी, जबकि गेहूं की खपत लगभग 27 किलो से 52 किलो तक दोगुना हो गया है।
शहरी भारत में यह विश्वास है कि गेहूं और चावल मोटे अनाज से बेहतर हैं और आहार विकास का सबसे बड़ा कारण है। खाद्य सुविधा ने भी भूमिका निभाई है। बिस्कुट, केक और नूडल्स जैसे मशीनीकृत उत्पाद के लिए गेहूं का विशेष रुप से योगदान है। गेहूं और चावल की तुलना में मोटे अनाज में अधिक लोहा, कैल्शियम और खनिज है।

फोटो और लेख साभार: इंडियास्पेंड