खबर लहरिया जवानी दीवानी भारतीय अमीर लेकिन तीन साल में सबसे कम खुश है

भारतीय अमीर लेकिन तीन साल में सबसे कम खुश है

विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट 2018 अभी हाल ही में जारी की गई थी जिसमें 156 देशों में उनकी ख़ुशी स्तर और 117 देशों को उनके आप्रवासियों की खुशी के स्तर पर रैंक दी गयी।
फिनलैंड को सूची में सबसे खुशहाल देश के रूप में स्थान दिया गया था और पूर्वी अफ्रीका में बुरुंडी दुनिया में सबसे अप्रसन्न माना गया।
जबकि, पाकिस्तान 75 वें, चीन 86 वें और नेपाल का 101वां के बाद भारत रिपोर्ट में 133वें स्थान पर रहा है। हैरान करने वाली बात यह है कि इस सूचकांक में चीन जैसा सबसे बड़ी आबादी वाला देश ही नहीं बल्कि पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार जैसे छोटेछोटे पड़ोसी देश भी ख़ुशहाली के मामले में भारत से ऊपर हैं। यानी इन देशों के नागरिक भारतीयों के मुकाबले ज्यादा ख़ुश हैं।
‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट’ संयुक्त राष्ट्र का एक संस्थान ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क’ (एसडीएसएन) हर साल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वे करके जारी करता है। इसमें अर्थशास्त्रियों की एक टीम समाज में सुशासन, प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य, जीवित रहने की उम्र, भरोसा, सामाजिक सहयोग, स्वतंत्रता, उदारता आदि पैमानों पर दुनिया के सारे देशों के नागरिकों के इस अहसास को नापती है कि वे कितने ख़ुश हैं।
देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) या विकास दर बढ़ा लेने भर से हम एक ख़ुशहाल समाज नहीं बन जाएंगे। दरअसल, यह रिपोर्ट इस हक़ीक़त को भी साफ़तौर पर रेखांकित करती है कि केवल आर्थिक समृद्धि ही किसी समाज में ख़ुशहाली नहीं ला सकती।
इसीलिए आर्थिक समृद्धि के प्रतीक माने जाने वाले अमरीका (18), ब्रिटेन (19) और संयुक्त अरब अमीरात (20) भी दुनिया के सबसे ख़ुशहाल 10 देशों में अपनी जगह नहीं बना पाए हैं।
भारत की स्थिति इन सभी पैमानों पर बहुत अच्छी नहीं है। फिर भी हम पाकिस्तान, बांग्लादेश और ईरान से भी बदतर स्थिति में हैं, यह बात हैरान करने वाली है।लेकिन इस हकीकत की वजह शायद यह है कि भारत में विकल्प तो बहुतायत में हैं लेकिन सभी लोगों की उन तक पहुंच नहीं है, जिसकी वजह से लोगों में असंतोष है।
इस स्थिति के बरक्स कई देशों में जो सीमित विकल्प उपलब्ध हैं, उनके बारे में भी लोगों को ठीक से जानकारी ही नहीं है, इसलिए वे अपने सीमित दायरे में ही खुश और संतुष्ट हैं। फिर भारत में तो जितनी आर्थिक असमानता है, वह भी लोगों में असंतोष या मायूसी पैदा करती है।
मसलन, भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर ख़र्च ज़्यादा होता है, पर स्वास्थ्य के मानकों के आधार पर पाकिस्तान और बांग्लादेश हमसे बेहतर स्थिति में हैं।

साभार: इंडियास्पेंड