खबर लहरिया बाँदा बड़े लोगों की वजह से गरीबों पर पड़ी मार बाँदा में नोटबंदी – बाज…

बड़े लोगों की वजह से गरीबों पर पड़ी मार बाँदा में नोटबंदी – बाज…

जिला बांदा, 14 दिसम्बर। नोटबंदी को एक महीने से ज्यादा हो गया है। पर अभी भी सरकार लोगों को इससे होने वाली परेशानियों को दूर नहीं कर पाई है। शहरों में तो सरकार के “कैशलेस अर्थव्यवस्था” के नारे काम आ रहे हैं, पर गांवों में तकनीकी से दूर रहने वाले लोगों को रोज नई परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है।

80 वर्षीय साहबदीन, लहरेटा गांव के रहने वाले है। उन्हें इस आराम करने वाली उम्र में रोज 5 घण्टे बैंक की लाइन में खड़ा होना पड़ता है। साहबदीन ने पैसा ना मिलने की स्थिति में उधार लेकर कुछ दिनों के लिए घर का चुल्हा तो जला लिया पर अब उन्हें ये उधार चुकाना है। जिसके लिए वह बिना खाएं बैंक की लाइन में लग जाते हैं और दोपहर तक उन्हें पता चलता हैं कि अब बैंक के पास देने के लिए पैसे नहीं है।

साहबदीन के चेहरे पर गुस्सा और बेबसी दोनों भाव साफ़ नजर आत हैं जब वो कहते हैं, “बिन पैसे बीज और खाद कैसे खरीदे। खेत तो पैसों का इंतेजार नहीं कर सकते हैं और अगर अभी फसल नहीं लगाई तो हम साल भर क्या कमाएंगे?”

बुंदेलखण्ड के सूखाग्रस्त इलाके में किसानों के पास इतना अनाज नहीं हैं कि वे अनाज बेचकर पैसा कमा पाए। इन हालतों के बारे में बांदा के किसान राम सिंह कहते हैं, “हम अपना कीमती समान गिरवी रखकर बीज और खाद के लिए पैसों का बंदोबस्त करते हैं। पर इसमें भी हमें आधे पैसे पुराने नोट में मिल रहे हैं और अब हम उन पुराने पैसों का क्या करें। जिसके कारण हम अब उधार के भरोसे भी नहीं रह सकते हैं।”

नोटबंदी से हर आदमी कम या ज्यादा रुप से प्रभावित हुआ है। जहां किसानों को खेतों में बोने के लिए बीज नहीं मिल रहा, वही छोटे कारोबारियों की दिन की कमाई भी कम हो गई है।

गरम कपड़ों का ठेला लगाने वाले कल्लू पहले 300 रुपये तक की कमाई एक दिन में कर लेते थे। पर अब तो वह 50 रुपये भी मुश्किलसे कमा रहे हैं, क्योंकि नकदी की इस किल्लत में हर कोई सिर्फ जरूरत का समान ही खरीद रहा है। ऐसे में नये कपड़े लेने की कौन और क्यों सोचे। वह नोटबंदी को अपना धंधा जाम करने का एक कारण बताते हैं।

कल्लू की तरह ही परचून की दुकानदार मुलिया कहती हैं, “पहले तो मैं 4 हजार तक का समान बेच देती थी। पर अब तो सौ रुपये का ही माल बिक पा रहा है।”

ऑटो ड्राइवर पप्पू भी पहले हजार रुपये से अब 200 रुपये ही कमा पा रहा है। वह अपनी कमाई में आए इस अन्तर के चलते अपने खर्चे कम कर चुका है। वह कहते हैं, “पहले मैं आधा लीटर दूध खरीदता था, जो अब कम होकर 100 से 150 ग्राम हो गया है।”

बीज व्यापारी शिव मोहन गुप्ता भी व्यापार ठप होने की बात कहते हुए बताते हैं कि किसानों के पास नकदी नहीं और बिना नकदी के हम कितनों का उधार दे सकते हैं। आखिर हमें भी तो अपना घर चलाना है।

शहबाजपुर का नत्थू छह महीने से टीबी का इलाज करा रहा है। अब बेचारा अपनी दवा खरीदने के लिए बैंकों की कतार में लगा है। वह कहता हैं, “दवा खरीदना बहुत जरूरी हैं क्योंकि टीबी में आप एक भी दिन बिन दवा खाएं नहीं रह सकते हो।”

विमला को भी दवा और बच्चों के स्कूल में फीस देने के लिए नकद पैसों की जरुरत है। पर नकदी संकट के कारण वह भी परेशान हैं। वह कहती हैं, “मैं आंगनबाड़ी कार्यकता हूं और मेरा वेतन बैंक में आता है। ऐसी स्थिति में बैंकों के सामने घण्टों खड़े होने के अलावा मेरे पास दूसरा कोई चारा नहीं हैं।”

नकदी नहीं होने के कारण लोगों के घरों में तीन वक्त का भोजन बनना भी मुश्किल हो रहा है। 40 साल की नूरजहां कहती हैं, “मेरे पास घर के नमक मिर्च तक खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं, तो ऐसे में घर में कैसे खाना बनेगा? आप समझ सकते हैं।”

जुम्मी, 52 के घर में तीन रोज की रोटी बिन सब्जी के खाई जा रही है। यहां भी वजह यही नोटबंदी है।

ग्रामीण बैंकों में कम पैसा होने के कारण लोगों का बैंकों के प्रति गुस्सा भी सातवे आसमान पर है। सावित्री, 25, अपना पैसा बैंक से नहीं निकलने के कारण परेशान है। वह कहती हैं, “20 दिनों से बैंक के चक्कर काट रही हूं पर पैसा नहीं मिल पा रहा है।”

85 साल के बिहारी जी तीन दिनों से बैंक में पैसे लेने के लिए खड़े हो रहे थे पर पैसा चौथे दिन शाम के 4 बजे पैसा मिला। वह शिकायती लहजे में कहते हैं, “हमारी वहां कोई नहीं सुनता है। मैं सुबह तड़के ही बैंक के सामने खड़ा हो जाता था। फिर चार-पांच घण्टे खड़े होने के बाद हमें पैसा नहीं होने की बात कह देते थे।”

छोटू बैंक वालों पर अमीर आदमी का काम जल्दी करने का आरोप लगाते हैं। वहीं नरैनी के रमाकांत मुकेरा बैंक मित्र के पास भी पैसे नहीं मिलने की बात कहते हैं।

दूसरी ओर बैंक कर्मचारियों के प्रति लोगों के गुस्से पर बैंक कर्मचारी उनके पास भी पर्याप्त पैसा नहीं होने के बात कहते हैं।

इलाहाबाद ग्रामीण बैंक के मैनेजर हरी नारायन दीक्षित कहते हैं, “हमारे बैंक के सामने 5 सौ लोग खडे़ होते हैं। अब इनमें से सौ लोगों को पैसा मिलेगा तो दूसरे लोग गुस्से में हम पर आरोप लगाएंगे ही।” वह लोगों की जरुरत पूरी करने के लिए 5 लाख रुपये की नकदी बैंक को उपलब्ध करने की बात कहते हैं।

गांवों में लोगों को नकदी की कमी के कारण बहुत परेशानियां हो रही है। पर इस सब के बवजूद भी नोटबंदी के समर्थन और विरोध पर लोगों की प्रतिक्रिया मिलीजुली है।

रिपोर्टर- मीरा देवी

09/12/2016 को प्रकाशित