खबर लहरिया औरतें काम पर फुटबॉल के ज़रिये सामाजिक सोच बदलने में लगी हैं बनारस की पूनम

फुटबॉल के ज़रिये सामाजिक सोच बदलने में लगी हैं बनारस की पूनम

साभार: विकिमीडिया कॉमन्स

वाराणसी में महिला स्वरोजगार समिति (एम एस एस) किशोर लड़कियों की मदद कर रही है उनकी पहचान को आकार देने में और फुटबॉल के माध्यम से लिंग भेद भाव की पिछड़ी हुई सोच को मिटाने में।
बनारस की रहने वाली पूनम कभी, अच्छी लड़की होने का मतलब ‘घर पर रहने वाली और जल्दी शादी करने वाली लड़की’ समझती थी, लेकिन फुटबॉल से रूबरू होने के बाद उनकी सोच बदल गयी है।
एमएसएस ने लड़कियों के 25 समूह बनाये हैं जो और फुटबॉल खेलने के साथ-साथ लिंग, पितृसत्ता, कामुकता और प्रजनन स्वास्थ्य पर चर्चा करने के लिए नियमित रूप से मिलते हैं।
इन समूहों की 75% लड़कियां स्कूल गयी हैं जबकि इनमें से ही पांच लड़कियाँ शादीशुदा हैं। सभी लड़कियाँ दलित और मुस्लिम समुदाय से आती हैं। इस संस्था से जुड़ने के बाद सभी ने अपनी और अपने परिवार की सोच को बदलने में लगी हैं। वह बताना चाहती हैं कि जिस तरह फुटबॉल पुरुषों का ही खेल नहीं बल्कि महिलाओं का भी खेल है उसी तरह से समाज में महिलाओं का भी वही स्थान है जो पुरुषों का है।