खबर लहरिया बाँदा पैसे नहीं मिलने पर बाँदा के छापर गाँव में अंकिता की मौत

पैसे नहीं मिलने पर बाँदा के छापर गाँव में अंकिता की मौत

जिला बांदा,ब्लॉक नरैनी, तिंदवारी, गांव नसेनी, छापर, 14 दिसम्बर 2016। देश में “कैशलेस अर्थव्यवस्था” को बढ़ावा देने के लिए सरकार चाहे तो नोटबंदी को फायदेमंद कह रही हो,पर नोटबंदी से होने वाली दुखद घटनाएं रोज़ सामने आ रही हैं।

इन ही घटनाओं में से एक घटना बांदा जिले के नसेनी में हुई, जहां 40 वर्षीय अनीशा की मौत हो गई। अनीशा पिछले डेढ़ साल से बीमार थी। और वहीं ब्लाक तिंदवारी के छापर गांव के धर्मेन्द्र की तीन साल की बेटी अंकिता की मौत का कारण नोटबंदी ही है। धर्मेन्द्र 19 नवम्बर से लेकर 21 नवम्बर 2016 तक रोज इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक में पैसे निकालने के लिए खड़ा हुआ पर पैसे नहीं मिल पाये और उसकी बेटी अंकिता की मौत हो गई।

अनीशा टीबी की बीमारी से पीड़ित थी और पिछले छह महीने से नौगांव से उसका इलाज चला रहा था। पर देश में तरल मुद्रा संकट के कारण इलाज के लिए पैसा लेने के लिए अनीशा को रोज बैंक में खड़ा होना पड़ा, जिसके कारण अनीशा की तबीयत बिगाड़ गई और उसकी मौत हो गई। परिवार वालों के अनुसार अनीशा के इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक में 71 हजार रुपये जमा थे और खाता अनीशा के नाम पर होने के कारण अनीशा को ही बैंक में जाना पड़ता था। बैंक में चार दिन तक खड़े रहने के कारण 28 नवम्बर को अनीशा की मौत हो गई। परिवार में नकदी की कमी इस प्रकार थी कि अनीशा के कफन के पैसे भी चंदे से इकठ्ठा हुए।

अनीशा के शौहर अख्तर खान अपनी बेगम की मौत का कारण नोटबंदी और बैंक दोनों को बोल रहे हैं। वह कहते हैं कि अनीशा को बीमार होने के बावजूद भी कभी बैंक से कोई राहत नहीं मिली उसे भी लाइन में बहुत देर तक खड़ा होने पड़ता था।

अनीशा का बेटा शाहरुख़ मां की अचानक हालत खराब होने से हुई मौत पर कहता हैं, “मैं मां के साथ चार दिन तक बैंक गया था, जिसमें से एक दिन हमें 2 हजार रुपये मिले थे।”

नोटबंदी के कारण तिंदवारी ब्लॉक के छापर गांव की 3 साल की अंकिता की 21 नवम्बर को मौत हो गई है। अंकिता के परिवार वालों के अनुसार वे अंकिता के इलाज के लिए पैसे लेने के लिए 19 नवम्बर से 21 नवम्बर तक इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक की लाइन में खड़े होते थे, पर उन्हें इस बुरी स्थिति में भी पैसे नहीं मिले। हालांकि बैंक वालों के खिलाफ कार्रवाही की मांग की जा रही है।

अंकिता के दादा सियाराम कहते हैं, “बैंक खाते में हमारे मेहनत का पैसा जमा था, जिसको लेने के लिए हमें बैंक वालों के सामने भीख मांगनी पड़ा रही थी।” सियाराम इस तरह के बड़े कदम में सरकार के सही तरह से इंतेजाम नहीं होने पर इस कदम को गरीबों को मारने वाला कहते हैं।

रिपोर्टर- मीरा देवी 

09/12/2016 को प्रकाशित