खबर लहरिया बाँदा नशे में धुत्त झोला छाप डाॅक्टर ने बांदा में आदमी की ली जान

नशे में धुत्त झोला छाप डाॅक्टर ने बांदा में आदमी की ली जान

नवल किशोर का परिवार

नवल किशोर का परिवार

जि़ला बांदा, ब्लाॅक तिन्दवारी, गांव सिंघौली। बात जनवरी 3, 2016 की थी। 25 साल के नवल किशोर की मौत झोला छाप डॉक्टर के ऑपरेशन के दौरान हो गई थी। डॉक्टर शिवकुमार विश्वकर्मा ने ज़ंग लगी आरी से, जिससे लोहा काटा जाता है, पैर काट दिया था। एक घंटे के ऑपरेशन में नवल किशोर की मौत हो गई। फिलहाल किशोर का परिवार सदमे में है।
किशोर का पैर तीन साल पहले टूट गया था जब वह बांदा सरकारी अस्पताल में फिसल कर गिर गया था। उसी अस्पताल में उसने इलाज करवाया लेकिन पैर ठीक नहीं हुआ। सिंघौली का निवासी किशोर किसान परिवार से था। कुछ साल पहले उसके पिताजी का देहांत हो गया था। आंठवी पास किशोर परिवार का सबसे छोटा सदस्य था, उसकी आठ बहनें हैं। उनके इलाज के लिए किशोर की मां ने 22 बीघा ज़मीन बेच डाली और लाखों रुपए खर्च किए। किशोर ने कानपुर, लखनऊ, और नौएडा के प्राइवेट अस्पतालों के चक्कर लगाए, एक ऑपरेशन भी हुआ और उसके पैर में छड़ी डाली गई। इलाज महीने-महीने तक चलता रहा लेकिन 25 साल के किशोर को कोई राहत नहीं मिली। कूल्हे के पास से खून का रिसना बंद नहीं हुआ। डॉक्टरों ने दवाई दी लेकिन पैर काटने की बात कभी नहीं आई।
जनवरी 3 को झोला छाप डॉक्टर शिवकुमार विश्वकर्मा और उसका लड़के प्रदीप कुमार विश्वकर्मा ने किशोर को तिंदवारी क्लिनिक बुलाया। शिवकुमार लगभग 10 साल से अपना क्लीनिक चला रहा है। क्लीनिक का ना कोई नाम है ना कोई बोर्ड। सिर्फ पेंट से लिखा है-हाइड्रो सील का इलाज यहाँ। शिवकुमार का कहना है कि उनके पास एम.बी.बी.एस. की डिग्री है। लेकिन पुलिस को ऐसा कोई भी साक्ष्य नहीं मिला। दुकान का कोई रजिस्ट्रेशन भी नहीं है। तो शिवकुमार को झोला छाप डॉक्टर और फ़र्ज़ी कहा जा सकता है।
तीन महीने पहले शिवकुमार को किशोर के पैर की हालत की भनक लगी और उसके घर में आना-जाना शुरू कर दिया। शिवकुमार ने किशोर और उसकी बूढ़ी माँ को जमकर भड़काया, कहा कि बड़े अस्पताल सिर्फ नाम के बड़े होते हैं। मैं गारंटी देता हूँ कि पैर ठीक कर दूंगा। झोला छाप डॉक्टर ने ऑपरेशन की बात भी की, नवल किशोर खुशी से झूम गया और अपनी बहनों और जीजा को सूचना दे दी।
जब परिवार तैयार नहीं था, तो शिवकुमार ने कॉन्सिलिंग दी सबको। पचासी हज़ार रुपए में पैर का ऑपरेशन, दवा और इलाज की गारांटी दी शिवकुमार ने। चारपाई पर खाने, पीने और रहने वाले किशोर की झोला छाप डॉक्टर की बातों से उम्मीद बढ़ गई।
जनवरी 3 की दोपहर के 3 बजे किशोर का ऑपरेशन शुरू हुआ। तीस हज़ार रुपए नकद लिए। सर्जरी के बाद बाकी पैसे देने का वादा किया। किशोर के साथ उसकी 70 साल की माँ और एक जीजा थे।
क्लीनिक का एक छोटा कमरा है। एक तख्त पड़ी है, बोतल टांगने का स्टैंड और ड्रेसिंग का कुछ सामान रखा हुआ है, कुछ दवाइयां भी हैं। पैर काटने के लिए जं़ग लगी लोहे की आरी भी वहीं है।
डाॅक्टर नवल किशोर को दो बेहोशी के इंजैक्शन लगाता है और तख्त पर लिटा देता है। मां और जीजा को बाहर जाने के लिए बोलता है। जीजा अन्दर ही रहने की अनुमति मांगता है। बहुत कहने पर डाॅक्टर मान जाता है। अब कमरे में मौजूद जीजा केदार ने बताया कि डाॅक्टर शिवकुमार विश्वकर्मा और बेटा प्रदीप कुमार विश्वकर्मा आरी के द्वारा पैर को काटना शुरू करते हंै। दोनों के मुंह से शराब की बदबू बहुत तेज़ आ रही है।
अब समझिए जैसे लकड़ी या लोहे को काटा जाता है वैसे ही काटा जा रहा है नवल किशोर का पैर। नवल किशोर बेहोशी की हालात में चिल्लाना शुुरू कर देता है, ‘मुझे बहुत तेज़ लग रहा है, मैं मर जाउंगा। मुझे छोड़ दो मुझे अपना पैर नहीं कटवाना है।’ मां और जीजा भी मना कर रहे थे। तो डाॅक्टर किशोर के मुंह  में कपड़ा ठूस देता है और आंखें कपड़े से बांध देता है। जल्दी-जल्दी आरी को चलाते हैं और एक घंटे तक चलता है यह सिलसिला। जब तक पैर कूल्हे से अलग होता है क्लीनिक खून से भर जाता है और पैर कूल्हे से अलग हो जाता है। नवल किशोर की सांसे  थम जाती हैं।
चद्दर में पूरे शरीर को ढक कर जब नवल किशोर को डाॅक्टर बाहर निकालता है तो मां छूने की कोशिश करती है। डाॅक्टर छूने से मना करता है कहता है कि होश आने में एक और घंटा लगेगा। तब तक जीजा समझ गया था। और बाहर जाकर सरकारी डॉक्टर को फोन करके बुला लेता है। सरकारी डाॅक्टर क्लीनिक में आकर नवल किशोर की नाड़ी देखता है और कहता है कि नवल किशोर तो मर चुका है। थोड़ी देर में पुलिस आती है और दोनों बाप-बेटे को गिरफ्तार करती है। पोस्ट मार्टम और दाह संस्कार के बाद जब परिवार वाले रिर्पोट की नकल मांगने थाने जाते हैं तो पता चलता है कि अभी तो रिर्पोट लिखी ही नहीं गई है।
थाने में समझौते की बात चलने लगती है। परिवारवाले तैयार नहीं होते पर पुलिस पूरी कोशिश करती है दोनों झोला छाप डॉक्टरों को बचाने की। जब तक खबर लहरिया नहीं पहुंचती तब तक पुलिस रिपोर्ट नहीं दर्ज करती है।
थाने के मुंशी का कहना है कि मुकदमा संख्या 3/2016 के तहत रिर्पोट लिखी गई है। धारा 304 लगी है। दोनों को 6 जनवरी को जेल में डाल दिया है।